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________________ [10] 00000000.......................00000000000000000000000000 समर्पण पूजनीय पूज्य महात्माओ! यह "मुख - वस्त्रिका - सिद्धि” नामक छोटा सा निबन्ध लिखा गया है, सो केवल आप महात्माओं की ज्ञान प्रसादी के आधार पर ही है। इस तुच्छ सेवक ने आप पूज्यवरों के विशाल ज्ञान भण्डारों से इस विषयक जो यत् किचित् ज्ञान पाया है, उसी के अनुसार उचित साधन जुटा कर यह पुष्प निष्पन्न किया गया है। आप महर्षियों ने शास्त्र सम्मत एवं सुविहितों - सुसाधुओं द्वारा आचरित "मुख - वस्त्रिका " को सहर्ष धारण कर रखी है। यद्यपि विरोधियों द्वारा आप महानुभावों पर असहनीय एवं नीच शब्दों द्वारा कई बार आक्रमण हुए हैं और हो रहे हैं। तथापि आप अपने विरोधियों की हरकतों पर ध्यान नहीं देते हुए निज ध्येय पर अडिग रह कर जैन शासन की उन्नति एवं सुविहित पद्धति का प्रचार कर रहे हैं । अतएव यह छोटा-सा निबन्ध सहर्ष आप श्री के चरणों में समर्पित करता हूँ । चरणानुचर - "रत्न" द्वितीयावृत्ति की विशेषता तीन वर्ष के बाद "मुख- वस्त्रिका - सिद्धि" नूतन रूप (द्वितीयावृत्ति) में प्रिय पाठकों की सेवा में उपस्थित हो रही है। एक तो गुजराती प्रेस, दूसरा प्रूफ शुद्धि का समुचित प्रबन्ध नहीं हो सकने के कारण प्रथमावृत्ति में अशुद्धियाँ बहुत रह गई थी, किन्तु दूसरी आवृत्ति में यह खामी बहुत दूर हो गई है। इसके सिवाय अन्तिम प्रकरण एवं परिशिष्ट नम्बर २ इस आवृत्ति की खास विशेषता है। आशा है कि सुज्ञ पाठक इससे समुचित लाभ उठावेंगे। सैलाना विनीतरतनलाल डोशी आषाढ़ शुक्ला द विक्रम संवत् १६६८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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