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________________ प्राकृत एवं जैन धर्म अध्ययन विदेशों में अध्ययन केन्द्र एवं अन्य प्रवृत्तियां : लगभग दो सौ वर्षो तक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा जैनविद्या पर किया गया अध्ययन भारत एवं विदेशों में जैनविद्या के प्रचार-प्रसार में पर्याप्त उपयोगी रहा है। इन विद्वानों के कार्यो एवं लगन को देखकर भारतीय विद्वान् भी जैनविद्या के अध्ययन में जुटे । परिणामस्वरूप न केवल प्राकृत-अपभ्रंश साहित्य के सैकड़ों ग्रन्थ प्रकाश में आये, अपितु भारतीय विद्या के अध्ययन के लिए जैनविद्या के अध्ययन की अनिवार्यता अब अनुभव की जाने लगी है। डॉ. पी. एल. वैद्या , डॉ. एच. डी. बेलणकर , डॉ. एच. एल. जैन , डॉ. ए. एन. उपाध्ये, डॉ. जी. बी. तगारे . मुनि पुण्यविजय एवं मुनि जिनविजय , डॉ. नथमल टाटिया , पं. दलसुख भाई मालवणिया आदि विद्वानों के कार्यो को इस क्षेत्र में सदा स्मरण किया जावेगा । विदेशों में भी वर्तमान में जैनविद्या के अध्ययन ने जोर पकड़ा है। पूर्व जर्मनी में फी युनिवर्सिटी बर्लिन में प्रोफेसर डॉ. क्लोस बुहन जैन लिटरेचर एण्ड माइथोलाजी , इंडियन आर्ट एण्ड इकोनोग्राफी का अध्यापन कार्य कर रहे हैं। उनके सहयोगी डॉ. सी. बी. त्रिपाठी बुद्धिस्ट- जैन लिटरेचर तथा डॉ. मोनीका जार्डन ने जैन लिटरेचर के अध्यापन का कार्य किया है । पश्चिमी जर्मनी हमबर्ग में डॉ. एल. आल्सडार्फ स्वयं जैनविद्या के अध्ययन-अध्यापन में संलग्न रहे उत्त्राध्ययननियुक्ति पर उन्होंने कार्य किया। उनके छात्र श्वेताम्बर एवं दिगम्बर जैन ग्रन्थों पर शोध कर रहे हैं । प्राकृत भाषाओं का विशेष अध्ययन बेलजियम में किया जा रहा है। वहाँ पर डॉ जे. डेल्यू जैनिज्म तथा प्राकृत पर, डॉ. एल. डी. राय क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत पर , प्रो. डॉ. आर फोहले क्लासिकल संस्कृत प्राकृत एण्ड इंडियन रिलीजन पर तथा प्रो. डॉ. ए. श्चार्ये एशियण्ट इंडियन लैंग्वेजेज एण्ड लिटरेचर , वैदिक क्लासिकल संस्कृत एण्ड प्राकृत पर अध्ययन–अनुसन्धान कर रहे हैं । इसी प्रकार पेनीसिलवानिया युनिवर्सिटी में प्रो. नार्मन ब्राउन के निर्देशन में प्राकृत तथा जैन साहित्य में शोधकार्य हुआ है। इटली में प्रो. डॉ. वितरो विसानी एवं प्रो. ओकार बोटो जैनविद्या के अध्ययन में संलग्न हैं। आस्ट्रेलिया में प्रो. ई. फाउल्लर वेना जैनविद्या के विद्वान हैं । पेरिस में प्रो. डॉ. वाल्टर वार्ड भारतीय विद्या के अध्ययन के साथ-साथ जैनिज्म पर भी शोध-कार्य में संलग्न है। प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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