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शताब्दी के अन्तिम दौर में यहाँ प्राकृत और जैनधर्म विषय पर सैकड़ों विद्वान अपने शोध आलेखों को प्रस्तुत करने के लिए एकत्रित हुए हैं । यहाँ की जैन समाज आज भी जैन धर्म और दर्शन के उन्नयन में सक्रिय है । उसका प्रतिफल है- चेन्नई में रिसर्च फाउन्डेसन आफ जैनोलाजी तथा डिपार्टमेन्ट और जैनोलाजी जैसे केन्द्रों का कुशल संचालन । इस सुदृढ़ पृष्ठभूमि में प्राकृत और जैन धर्म के अध्ययन अनुसंधान का विश्लेषण करना सार्थक होगा ऐसा मैं मानता हूँ ।
प्राच्य विद्या सम्मेलन के प्राकृत एवं जैन धर्म सेक्सन के अध्यक्ष पद को मुझसे पूर्व अनेक मूर्धन्य मनीषियों ने सुशोभित किया है । उनमें प्रो. हीरालाल जैन , पंडित दलसुख भाई मालवणिया , प्रो. नथमल टाटिया , प्रो. राजाराम जैन आदि प्रमुख हैं । इन सबको आदरपूर्वक प्रणाम करते हुए मेरा यह विनम्र प्रयास है कि आप सब विद्वानों के समक्ष प्राकृत एवं जैनधर्म के अध्ययन के विषय में कतिपय बिन्दुओं पर चर्चा की जाय । प्राकृत एवं जैन धर्म के क्षेत्र में जो शोध कार्य हुआ है उसका लंबे अन्तराल से विस्तार से कोई विश्लेषण नहीं हो पाया है। विगत पाँच छः अधिवेशनों के अध्यक्षीय भाषण ही प्रकाशित नहीं हो सके हैं । अतः मात्र विगत दो वर्षों के प्राकृत अध्ययन की चर्चा करने से जैनविद्या के शोध कार्यो का दिग्दर्शन नहीं हो पाता है । यह बीसवीं शताब्दी का अन्तिम दशक भी समाप्ति की ओर है । अतः मैंने अपने अध्यक्षीय भाषण में इस विगत दशक (1990 से 2000 तक ) में सम्पन्न प्राकृत और जैन धर्म के शोध कार्यो के विवरण को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । विभिन्न संस्थानों और विद्वानों को सम्पर्क करने के उपरान्त भी बहुत कम लोगों से जानकारी उपलब्ध हो पाई । फिर भी विभिन्न स्त्रोतों के आधार पर विगत दशक में सम्पन्न शोधकार्य , प्रकाशन , शोधप्रबन्ध , सक्रिय शोध संस्थाओं आदि की संक्षिप्त जानकारी को यहां प्रस्तुत किया गया है। इसमें बहुत कुछ छूटना संभव है। फिर भी जो सामग्री प्रकाश में आई है वह इस बात की प्रेरणा लेने के लिए पर्याप्त है कि जैनविद्या के विद्वानों को अध्ययन की किस दिशा में संलग्न होना चाहिए । इस अध्यक्षीय भाषण के प्रकाशन में परम पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी की निरन्तर प्रेरणा और आशीर्वाद रहा है । श्री कुन्दकुन्द भारती प्राकृत संस्थान , नई दिल्ली के अधिकारियों ने इसके प्रकाशन में जो सहयोग दिया उसके लिए उनका आभार और मित्र विद्वानों के परामर्श-सहयोग के लिए उनका सादर स्मरण ।
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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