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सम्पन्न हुआ है । विभाग के शैक्षणिक सहयोग से " प्राकृतविद्या " शोध पत्रिका का विगत दस वर्षों से कुन्दकुन्द भारती , नई दिल्ली से नियमित प्रकाशन भी किया जा रहा है । संगोष्ठी - सम्मेलन :
विभाग के स्टाफ ने देश-विदेश की लगभग 60 संगोष्ठियों और सम्मलेनों में भाग लिया है । आचार्य एवं विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम सुमन जैन ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन अमेरिका और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन इटली ( रोम ) में शोधपत्र प्रस्तुत कर साथ ही आष्ट्यिा , जर्मनी , रोम के शोध संस्थानों में जैन धर्म पर व्याख्यान भी दिये हैं । अमेरिका और कनाडा से प्रकाशित अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में डॉ. जैन के लेख भी प्रकाशित हुए हैं । विभाग के सहयोग से राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन बैंगलोर और राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन हैदराबाद का आयोजन भी किया गया है , जिनमें विभागाध्यक्ष ने एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में योगदान किया है । अन्य प्राध्यापकों ने इनमें सम्मिलित होकर शोधपत्र प्रस्तुत किये हैं । ( 1) जैन आगम पर्यावरण-संतुलन एवं विश्व शांति तथा (2) शौरसेनी प्राकृत भाषा का अध्ययन विषय पर दो राष्ट्रीय संगोष्ठियों के आयोजन में भी विभाग ने सहयोग प्रदान किया है । पी-एच. डी. शोधकर्ता एवं विषय :
विभाग से जिन शोधार्थियों ने एम. ए. अथवा पी-एच. डी. उपाधियाँ प्राप्त की हैं वे अब विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न संस्थानों में शिक्षण और शोधकार्य में संलग्न हैं । उनमें से कतिपय हैं - 1. डॉ. हुकमचन्द जैन , 2. डॉ. सुधा खाब्या 3. डॉ. सुभाष कोठारी . 4. डॉ. सुरेश सिसोदिया , 5. डॉ. जिनेन्द्र जैन , 6. डॉ. कमल कुमार जैन , 7. डॉ. सुदीप जैन 8. डॉ. जय कुमार उपाध्ये , 9. डॉ. फतेहलाल जारोली , 10. डॉ. संतोष गोधा , 11. डॉ. पारसमणि खींचा , 12. डॉ. सरोज जैन , 13. श्री मानमल कुदाल , 14. कर्नल डी. एस. वया 15. डॉ. बीना जैन 16. मनोरमा जैन 17. डॉ. मंजु सिरोया आदि । इस विभाग में निम्नांकित विषयों पर शोधछात्र पी-एच. डी. के लिए पंजीकृत हैं- 1. तिलोयपण्णत्ति का सांस्कृतिक अध्ययन , 2. भगवती आराधना का समीक्षात्मक परिशीलन , 3. आ. नानेश का व्यक्तित्व एवं कृतित्व , 4. महाकवि राजशेखर का संस्कृत-प्राकृत काव्य को अवदान , 5. समीर मुनि व्यक्तित्व एवं कृत्तिव 6. षट्खण्डागम की धवलाटीका का भाषात्मक अध्ययन 7. पर्यावरण और प्राणी-संरक्षण । विभाग के सात शोधछात्र यू. जी. सी. नेट परीक्षा उत्तीर्ण कर
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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