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________________ जैन उदयपुर हैं और वर्तमान में प्रधान मानद सम्पादक प्रो. राजाराम जैन और तथा मानद सम्पादक डॉ सुदीप जैन हैं । 6-पुरस्कार : विद्वानों की साहित्यिक साधना को उर्जस्वित तथा प्रेरित करने हेतु आचार्य विद्यानन्द जी की प्रेरणा एवं उनके सान्निध्य में कुन्दकुन्द भारती के प्रांगण में 1-1 लाख के दो पुरुस्कारों से विद्वत्ता , गुणवत्ता एवं वरिष्ठता के आधार पर , उसकी प्रवर समिति के निर्णयानुसार सन् 1995 से आचार्य कुन्दकुन्द एवं आचार्य उमास्वामी नामक दो पुरस्कार प्रतिवर्ष शीर्षस्थ विद्वानों को क्रमशः प्राकृत एवं संस्कृत अवदान हेतु प्रदान किये जा रहे हैं। 7- प्राकृत दिवस एवं प्राकृत संगोष्ठियां : आचार्य श्री विद्यानन्द जी की प्रेरणा से 1994 में शौरसेनी प्राकृत संगोष्ठी एवं क्षुतपंचमी को प्राकृत दिवस समारोह राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किये जा रहे हैं , जिनसे प्राकृत के अध्ययन को विशेष गति मिली है। जैनविद्या का केन्द्र कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ , इन्दौर श्री देवकुमार सिंह कासलीवाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोतीलाल वोरा की उपस्थिति में दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट, इन्दौर के अन्तर्गत अक्टूबर 1987 में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की स्थापना की गयी । प्रारंभ से ही संस्था का संचालन का महत्वपूर्ण प्रभार मानद सचिव के रूप में डॉ. अनुपम जैन देख रहे हैं । विगत 10 वर्षों में इस संस्थान द्वारा उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की गयी है , जो इसे विशिष्ट केन्द्र का दर्जा प्रदान करती है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ की स्थापना मूलतः शोध संस्थान के रूप में ही की गयी है । इसके अन्तर्गत आधारभूत सुविधाओं के विकास की श्रृंखला में संदर्भ ग्रंथालय (पुस्तकालय) का विकास , त्रैमासिक शोध पत्रिका , अर्हत् वचन के प्रकाशन के साथ शोध गतिविधियों के विकास के क्रम में जैनशास्त्र भंडारों के सूचीकरण हेतु सूचीकरण परियोजना का क्रियान्वयन, व्याख्यानमालाओं का आयोजन, श्रेष्ठ शोध आलेखों के लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु अर्हत्वचन पुरस्कार योजना एवं जैन विद्याओं के क्षेत्र में मौलिक लेखन को प्रोत्साहित करने हेतु कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ को शोध केन्द्रों के रूप में मान्यता प्रदान करायी गई हैं । अब तक 3 पीएच. डी. 2. एम. फिल. एवं 5 स्नातकोत्तर स्तर पर शोध कार्यो का यहां संपादन हो चुका है। इसके अतिरिक्त 16 शोधार्थी डी. लिट्/ पी-एच. डी./ एम. फिल. हेतु अध्ययनरत हैं । प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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