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कराया गया है। मुनिश्री प्रमाणसागर जी ने • जैन धर्म और दर्शन - नामक पुस्तक भी लिखी है , जो विद्वानों के लिए पठनीय है। पूज्य विद्यासागर जी के ब्रम्हचारियों में भी एक- दो विद्वान् प्राकृत एवं जैनधर्म के गहन अध्ययन में संलग्न है। ब्रम्हचारी विनोद जैन ने शौरसेनी प्राकृत की प्रसिद्ध टीका धवला का पारिभाषिक शब्द-कोश तैयार किया है तथा जैनदर्शन में मार्गणा विषयक लेखन चल रहा है । पूज्य आचार्य श्री जी की प्रेरणा से जैना इण्डिका विश्वकोश के प्रकाशन भी तैयारी चल रही है।
दिगम्बर परम्परा के अन्य विद्वान आचार्य एवं सन्त जैनविद्या के अन्य पक्षों पर तो विद्वानों की संगोष्ठियाँ आदि कराते रहते हैं । किन्तु प्राकृतभाषा के प्रचार-प्रचार शिक्षण-शोध में वे उदासीन है। फिर भी समाज में कतिपय शोध संस्थान प्राकृत एवं जैनधर्म के अध्ययन-अनुसंधान के क्षेत्र में सक्रिय हुए हैं ।
प्रमुख शोध-संस्थान एवं विभाग
श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान :
आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज की पावन प्रेरणा से सन् 1974 में स्थापित तथा राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (भारत सरकार ) नई दिल्ली तथा कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा क्रमशः मान्यता प्राप्त श्री कुन्दकुन्द भारती जैन शोध संस्थान नई दिल्ली ने प्राकृत भाषा एवं जैन साहित्य के प्रकाशन तथा प्रचार-प्रसार में पिछले लगभग तीन दशकों में अभूतपूर्व कार्य किया है। उसने सन् 1995 से श्रुतपंचमी पर्व को प्राकृत भाषा दिवस के रूप में मनाये जाने का भारत व्यापी आन्दोलन किया तथा उसके उत्साहवर्धक परिणाम भी सम्मुख आये हैं ।
कुन्दकुन्द भारती ने सर्वप्रथम अनुभव किया कि भारत सरकार ने मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं की जननी प्राकृत भाषा की दुखद उपेक्षा की है, अतः उसने उसके समाधान हेतु निम्न प्रकार सराहनीय प्रयत्न किये - 1- अखिल भारतीय शौरसेनी प्राकृत संसद की स्थापना,
राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. मण्डन मिश्र ( पूर्व कुलपति- दिल्ली एवं वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय ) प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन निदेशक- कुन्दकुन्द भारती , दिल्ली कार्याध्यक्ष एवं प्रो. डॉ. प्रेम सुमन जैन , सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर प्रधान सचिव नियुक्त किये गये और उन्होंने भारत सरकार से अनुरोध किया कि वह दिल्ली में संस्कृत अकादमी के समान ही प्राकृत अकादमी की स्थापना करे
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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