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________________ ऋषि जी ने प्राकृत की शिक्षा को अपूर्व गति दी । स्वर्गीय आचार्य श्री तुलसी के सद्प्रयत्नों से प्राकृत आगम और जैनविद्या के अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने स्वयं प्राकृत भाषा एवं साहित्य में अभिवृद्धि की है । स्वर्गीय आचार्य नानेश की प्रेरणा से प्राकृत आगम संस्थान उदयपुर गतिशील हुआ है। आचार्य शीलचन्द्रगणि इस दिशा में सक्रिय सहयोग कर रहे हैं। स्वगीर्य आचार्य देवेन्द्र मुनि जी ने प्राकृत आगम साहित्य पर ग्रन्थ लिखे हैं । दिगम्बर परम्परा में आचार्यश्री तपःपूत दिगम्बर योगी विद्यानन्द जी महाराज प्राकृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हैं । उनके विश्वधर्म की रूपरेखा श्रमण संस्कृति समयसार पिच्छी कमण्डलु, धर्म-निरपेक्ष नहीं " 20 " , सम्प्रदाय निरपेक्ष प्रवचनमाला के दर्जनों प्रकाशित खण्ड, मोहनजोदारो और हरप्पा की संस्कृति सम्राट सिकन्दर और कल्याणमुनि, सम्राट - खारवेल प्रियदर्शी सम्राट अशोक, शर्वबर्म और उनका कातन्त्र - व्याकरण : ऐतिहासिक परिशीलन, जैसी रचनाएँ मील का पत्थर हैं । सन् 1995 से ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को प्राकृत भाषा दिवस के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाये जाने की योजना उन्ही की प्ररेणा का सफल है । इसी प्रकार ला. ब. शा. राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली में आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला का वार्षिक आयोजन प्राकृत विषयक वार्षिक सर्टिफिकेट तथा डिप्लोमा कोर्स के पाठ्यक्रम का प्रारम्भ तथा स्वतन्त्र प्राकृत एवं जैन-विद्या विभाग की स्थापना, प्राकृत एवं जैन विद्या के विविधि विषयों पर शोधकार्य · प्राकृत एवं जैनविद्या के छात्रछात्राओं के लिए सर्व सुविधा सम्पन्न छात्रावास की स्थापना की योजना प्राकृत पाठ्यक्रमों में स्वीकृत ग्रन्थों के प्रकाशन का योजना, गरिष्ठ एवं वरिष्ठ शोधार्थी विद्वानों को एक-एक लाख के पुरुस्कारों के लिए स्वायत्त सेवी संस्थाओं एवं सामाजिक नेताओं के लिए प्ररेणा, शौरसेनी प्राकृत साहित्य संसद की स्थापना तथा उसके माध्यम से दिल्ली में प्राकृत अकादमी की स्थापना और प्राकृत भाषा को संवैधानिक भाषा के रूप में भारत सरकार द्वारा मान्यता प्रदान कराने हेतु मार्गदर्शन आदि आचार्यश्री के ही ऐतिहासिक योगदान हैं, जो प्राकृत भाषा एवं साहित्य के इतिहास में स्वर्णक्षरों में लिखा जावेगा । " Jain Education International " 1 7 मध्य प्रदेश में प्रमुख रुप से जैनधर्म के प्रसार-प्रचार में संलग्न सन्तशिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महाराज कर मुनिसंघ विशाल है। आपके अनेक शिष्य मुनिराज सम्पूर्ण देश में जैनधर्म के विभिन्न पक्षों पर संगोष्ठी आदि कराने की प्रेरणा देते रहते हैं । कतिपय ग्रन्थों को भी पुनर्मुद्रण द्वारा उपलबध प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन · For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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