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________________ ४८ १-अध्यात्म खण्ड संवेदनाके द्वारा होता है। प्रेम, दर्द, टीस, सहानुभूति, करुणा आदि की सर्वजन-प्रसिद्ध प्रतीतियें ही यहां संवेदना शब्दका वाच्य है। २. प्रेम तात्त्विक दृष्टिसे देखनेपर हम हृदयको प्रेमके द्वारा लक्षित कर सकते हैं। यद्यपि लोकमें प्रेम शब्दका अर्थ अत्यन्त संकीर्ण है, परन्तु यहां तत्त्वके रूपमें व्यवस्थित किया गया होनेके कारण इसका अर्थ व्यापक है। इसका रूप ज्ञानात्मक न होकर भावात्मक है, जिसका सैद्धान्तिक विवेचन हम माताके प्रेमको उदाहरण मानकर सरलताके साथ कर सकते हैं। माताको अपने शिशुके साथ प्रेम होता है, परन्तु वह उसे शब्दोंके द्वारा बता नहीं सकती। जैसा प्रेम उसे अपने बच्चेके साथ होता है वैसा वह दूसरे बच्चेके साथ कर भी नहीं सकती। यदि ऐसा करनेके लिए उसे कहा जाय तो वह उसका क्या उत्तर देगी। यही न कहेगी कि आप कहते हैं तो मैं इस बच्चेको गोदमें बैठाकर प्रेमका अभिनय कर सकती हूँ परन्तु प्रेम करना, यह मेरे वशकी बात नहीं है। प्रेम होता है किया नहीं जाता। जिस प्रकार प्रयत्न करके आप हाथ पांव के द्वारा काम कर सकते हैं, जिस प्रकार प्रयत्न करके आप इन्द्रियोंके द्वारा विषयोंको जान सकते हैं, जिस प्रकार प्रयत्न करके आप मन तथा बुद्धिसे मनन चिन्तन तथा निर्णय कर सकते हैं, उस प्रकार प्रयत्न करके आप हृदयसे प्रेम कर नहीं सकते। 'प्रेम होता है किया नहीं जाता' यह इस विषयमें सबसे बड़ा सिद्धान्त है, जिसे आपको याद रखना चाहिए। ३. प्रात्मसात् तन्मयता इस विषयमें दूसरी बात है तन्मयता या आत्मसात्-करण । माता अपने शिशुको वक्षसे लगाकर सब कुछ भूल जाती है। उसके साथ तन्मय हो जाती है, मानो उसे अपने में समा लेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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