SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १- अध्यात्म खण्ड अष्टम भूमिका नाम है हृदय भूमि यही भगवान्का श्रीमण्डप है, जिसमें कमलासनपर चेतन महाप्रभु विराजमान हैं । प्रेम, विनय, भक्ति, मैत्री, प्रमोद, कारूण्य, माध्यस्थ्य, संवेग, वैराग्य आदिके रूपमें भावलोक इसका स्वरूप है जो धीरे-धीरे विकासको प्राप्त होता हुआ, प्रेमसे मैत्री, मैत्रीसे भक्ति और भक्तिसे समताकी उत्तरोत्तर उन्नतभूमियोंमें प्रवेश करता हुआ समग्रको हस्तगत करनेके लिये समर्थ हो जाता है । यहाँ अहंका क्षुद्र व्यक्तित्व चेतनमहाप्रभुके महान् व्यक्तित्वमें विलीन होकर महान् हो जाता है, पूर्ण हो जाता है, विभु हो जाता है, सर्वगत तथा सर्वव्यापक हो जाता है । ४४ हृदय भूमिका तथा समताका विशद विवेचन आगे किया जानेवाला है, यहाँ केवल इतना ही समझना कि इस अष्टम भूमिमें प्रवेश करने से पहले सभी साधक कहीं न कहीं अटके हुए हैं। सभी दिग्भ्रान्त हैं । यथा ३. भ्रान्ति चिज्ज्योतिका अनुभव करके इन्द्रियोंके व्यापारसे उपेक्षित हो जाना अर्थात् उनके प्रति समता धारण कर लेना इन्द्रियभूमिका अतिक्रम है । इसके स्थान पर ऐन्द्रिय विषयोंका त्याग करके इस भूमिका अतिक्रम मानना भ्रांति है । क्योंकि जैसा कि आगे बताया जायेगा, समता तथा शमता ही वास्तवमें चारित्र, धर्म अथवा स्वभाव है, और वह विधि निषेधसे अथवा ग्रहण त्यागसे अतीत है । इसी प्रकार शरीरके भीतर प्राणशक्ति किस प्रकार काम कर रही है, किस प्रकार वह एक एक अंग तथा उपांगको स्फुरित तथा चालित करती है, इस प्रकार प्राणके समस्त विधानका प्रत्यक्ष करके प्राणायाम आदिकी उपेक्षा कर देना द्वितीय भूमिका अतिक्रम है । इसके स्थानपर प्राणायाम द्वारा प्राणका रोध Jain Education International waves For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy