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________________ -अध्यात्म खण्ड पश्चिम आदि दिशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। परन्तु प्वायंट हटा लेनेपर इनकी कहीं सत्ता दिखाई नहीं देती, केवल एक पूर्ण तथा अखण्ड महाआकाश ही दिखाई देता है। इसी प्रकार अन्तर्वाह्य एकरूप इस महाकालमें अर्थात् अनाद्यनन्त कालके अखण्ड प्रवाहमें कहीं प्वायंट लगा देनेपर अथवा अंगुली टिका देनेपर भूत, वर्तमान भविष्यत उत्पन्न हो जाते हैं। परन्तु प्वायंट हटा लेनेपर इनकी कहीं सत्ता दिखाई नहीं देती, केवल एक पूर्ण तथा अखण्ड कालप्रवाह ही दिखाई देता है। इसी प्रकार अन्तर्बाह्य एकरूप सत्ताके महासागरमें कहीं प्वायंट लगा देनेपर अथवा अंगुली टिका देनेपर इष्ट-अनिष्ट, ग्राह्यत्याज्य आदिके विविध बिन्दु उत्पन्न हो जाते हैं। परन्तु प्वायंट हटा लेनेपर इनकी कहीं सत्ता नहीं दिखाई देती, सर्वत्र सर्वदा सत्सत्-सत् इस प्रकार केवल सत् ही दिखाई देता है अन्य कुछ नहीं। इस प्रकार अन्तर्बाह्य एकरूप इस 'इदं में कहीं भी कोई प्वायंट लगा देनेपर या अंगुली टिका देनेपर इसमें स्त्री पुरुष आदिकी विविध आकृतियें दिखाई देने लगती हैं और उनके साथ-साथ 'स्त्री' 'पुरुष' आदि उनके नाम भी उत्पन्न हो जाते हैं। परन्तु प्वायंट हटा लेनेपर इनकी कहीं सत्ता दिखाई नहीं देती, सकल नाम तथा रूप जिसके वक्षपर तैर रहे हैं ऐसा एक पूर्ण अथवा अखण्ड विश्व ही दिखाई देता है, अन्य कुछ नहीं। ५. महासत् समग्रको युगपत् देखनेपर यह जैसा पहले था वैसा ही अब है और वैसा ही आगे रहनेवाला है। यही इसका ध्रौव्य तथा स्थायित्व है। परन्तु इसके भीतर प्वायंट लगा लगाकर देखनेसे यह क्षुब्ध है, बराबर बदले जा रहा है, कुछका कुछ हुए जा रहा है। यही इसका उत्पाद व्यय है, अस्थायित्व है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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