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________________ २८ १ - अध्यात्म खण्ड एक अखण्ड सत्ताके रूपमें देखनेपर ये सब पदार्थ एक विश्व हैं और इनका संयोग वियोग उसका सौन्दर्य है । इस सौन्दर्य का अभाव हो जाय तो यह चित्र - लिखितवत्, कूटस्थ होकर रह जाय । तब मैं तथा तू कहाँसे आयें ? न जगत हो और न इसका व्यवहार। जिसप्रकार जीवित तथा चेष्टाशील रहनेपर ही शरीर सुन्दर प्रतीत होता है, मर जानेपर नहीं; उसी प्रकार चेष्टाशील होनेपर ही यह विश्व सुन्दर दिखाई देता है, कूटस्थ हो जानेपर नहीं । जिसप्रकार किसी नगरकी गलियोंमें जाकर देखनेपर कहीं निर्माण दिखाई देता है और कहीं संहार, कहीं जन्म दिखाई देता है और कहीं मरण, कहीं हर्ष दिखाई देता है और कहीं विषाद, कहीं सुन्दर दिखाई देता है और कहीं असुन्दर कहीं महल दिखाई देता है और कहीं टूटा फूटा खण्डहर, कहीं उपवन दिखाई देता है और कहीं श्मशान; इसी प्रकार इस विश्वके पदार्थोंको एक-एक करके ग्रहण करनेपर कहीं निर्माण दिखाई देता है कहीं संहार, कहीं जन्म कहीं मरण, कहीं हर्ष कहीं विषाद, कहीं इष्ट कहीं अनिष्ट । परन्तु जिस प्रकार वायुयानमें बैठकर उसी नगरको देखनेपर न कहीं निर्माण दिखाई देता है न कहीं संहार, न जन्म न मरण, न हर्ष न विषाद, न उपवन न श्मशान, केवल एक अखण्ड नगर दिखाई देता है, ये सकल द्वन्द्व जिसका सौन्दर्य हैं; इसी प्रकार समग्र दृष्टिसे इस विश्वको देखनेपर न कुछ निर्माण दिखाई देता है न संहार, न कुछ उत्पन्न हुआ दिखता है न विनष्ट, न इष्ट न अनिष्ट, केवल एक अखण्ड विश्व दिखता है, ये सकल द्वन्द्व जिसका सौन्दर्य है । जिस प्रकार किसी वनके पदार्थों को एक-एक करके देखनेपर कहीं हरियाली दिखती है और कहीं सूखा, कहीं वृक्ष और कहीं ठूंठ, कहीं पुष्प खिले दिखते हैं और कहीं गोबर तथा विष्टा; इसी प्रकार विश्वके पदार्थोंको एक-एक करके देखनेपर कहीं मनुष्य दिखता है और कहीं पशु, कहीं ब्राह्मण दिखता है और कहीं शूद्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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