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________________ २-आभ्यन्तर-जगत किए गए हैं। एकसे एक चतुर हैं, सदा शिकारको ताकमें रहते हैं, कोई दिखाई दिया नहीं कि इनकी प्रक्रिया प्रारम्भ हुई नहीं। देख, बड़ा मीठा बोलते हैं ये । इनकी बातों में नहीं आना है अन्यथा तुझे बताये देता हूँ कि ये बड़े चतुर ठग हैं, मीठा बोलकर ठगते हैं। बड़े-बड़े प्रलोभन दिखाते हैं-कभी धनका, कभी कोर्तिका, कभी स्वर्गका, कभी विद्वत्ताका, कभी पादपूजाका, यहाँतक कि कभीकभी भगवदर्शनका भी। परन्तु प्रवेश करनेसे पहले ही इस बातको समझ ले कि यह सब इस भूलभुलैयाके विभिन्न चतुष्पथ हैं जहाँ आकर प्रायः सब भटक जाते हैं, अपने लक्ष्य को भूल जाते हैं, लक्ष्यकी भ्रान्तिसे अलक्ष्यकी ओर चल निकलते हैं। सर धुनते हैं उस समय जबकि भव-वनके भयंकर जन्तुओंके बीच घिर जाते हैं। २. त्रिलोक __ देख अपने इस पुरुषाकार शरीरके भीतर पुरुषाकार आभ्यन्तर लोकको जिसमें तीनों लोक स्थित हैं-अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक । नाभिके नीचे अधोलोक, उससे ऊपर ऊर्ध्वलोक और इसी नाभि-देश में मध्यलोक । अधोलोक तथा ऊर्ध्वलोकको छोड़कर पहले इस मध्यलोकमें प्रवेश कर। इसकी रचना बड़ी जटिल है। यह चक्रव्यूह है जिसमें घुसकर व्यक्ति अपने प्राण गंवा देता है परन्तु बाहर निकल नहीं सकता। एकके पश्चात् एक असंख्यों द्वीप हैं। आगे आगे वाला द्वीप अपनेसे पहलेवाले द्वीपको परिवेष्टित किए हुए स्थित है। दुर्गको परिवेष्टित करने वाली खाईको भाँति प्रत्येक द्वीप अपने-अपने सागरसे परिवेष्टित' हुआ सुरक्षित है। शत्रु इसका उल्लंघन नहीं कर सकते। यदि कदाचित् कोई कर भो जाये तो द्वीपके द्वारपर ही रोक दिये जाते हैं। बड़ो विशाल सेना लेकर भी कोई चारों दिशाओंमें स्थित इन द्वारोंको जोत नहीं सकता, इसीसे ये विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजित कहलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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