________________
२-आभ्यन्तर-जगत
१. प्राभ्यन्तर विस्तार
आ मेरे साथ आ, मैं तुझे तेरे इस आभ्यन्तर लोककी सैर कराऊँ। ले मेरो अंगुली पकड़, अन्यथा भटक जायेगा । यह एक भूलभुलैया है, जिसमें न जाने कितने प्रान्त हैं। प्रत्येक प्रान्तमें अनेकों नगर हैं और प्रत्येक नगरके अनेकों द्वार हैं। नगरके भीतर जानेपर इतनी गलिये हैं कि उनकी गणना करनो सम्भव नहीं। एक गलीमें घुस जानेपर एकसे दूसरो और दूसरीसे तीसरी गलीमें जाता हुआ व्यक्ति कहांसे कहाँ पहुँच जायेगा, यह कहा नहीं जा सकता। इसलिये सावधान रहकर चलना है। किस दिशाके द्वारसे प्रवेश करके किस गलीके मार्गसे तू किस दिशामें चल रहा है और यह गलो कहाँ जाकर समाप्त हो जायेगो यह सब ध्यानमें रखकर चलना है। देख देख यह चौराहा आ गया। ऐसे ऐसे न जाने कितने चौराहे तुझे पार करने पड़ेंगे। प्रायः सभी यहाँ आकर मार्ग भूल जाते हैं, इसलिये मेरी अँगुली मत छोड़ दीजियो नहीं तो इससे बाहर निकलना तेरे लिये सम्भव न हो सकेगा।
देख देख सँभल, यह दूसरा द्वार आ गया। इसपर नियुक्त किए गए इस प्रहरीको देख। सभी द्वारोंपर इसी प्रकार प्रहरी नियुक्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org