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३०. स्वातन्त्र्य
जो खलु संसारत्थो जीवो, तत्तो दु परिणामो।
परिणामादो कम्म, कम्मादो होदि गदिसुगदी ।। १. परतन्त्र मी स्वतन्त्र ____ संसारी जीवमें संस्कारोंके उदयसे नित्य ही रागादि परिणाम होते रहते हैं, जिनके फलस्वरूप कर्म और कोंके निमित्तसे संसारभ्रमण, यह चक्र बराबर आजतक चला आ रहा है । कर्म-सिद्धान्त के अनुसार बताया गया है कि जीवके जैसे परिणाम होते हैं, उसको डिग्री टु डिग्री वैसा ही बन्ध होता है; जैसा बन्ध होता है, डिग्री टु डिग्री वैसा ही उदय होता है; और जैसा उदय होता है, डिग्री टु डिग्री वैसे ही परिणाम होते हैं । यहां यह शंका होनी स्वाभाविक है कि यदि जीवके परिणामोंका और बन्ध उदय आदिका डिग्री टु डिग्री सम्बन्ध है तो इस चक्रका विच्छेद जिस प्रकार आजतक नहीं हुमा है उसी प्रकार आगे भी कभी नहीं हो सकेगा।
शंका उपयुक्त है परन्तु निराश न होइये । जिस प्रकार निमित्तके क्षेत्रमें सिद्धान्त अटल है, उसी प्रकार उपादानके क्षेत्रमें आपकी
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