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________________ १८० २-कर्म खण्ड करता है । क्रिया हो और उदय न हो अथवा उदय हो और क्रिया न हो तो उदयका कोई सार्थक्य नहीं रहता, क्योंकि व्यक्तिके परिणामोंको प्रभावित करना अथवा फल प्रदान करना ही उदयका लक्षण है । इसलिये जहां क्रिया है वहां उदय अवश्य है । इसी प्रकार क्रिया हो और संस्कारकी उत्पत्ति न हो यह भी सम्भव नहीं। इसलिये जहां क्रिया है वहां नवीन संस्कारकी उत्पत्ति अथवा बंध भी अवश्य है। इस प्रकार हमारा प्रत्येक परिणाम अथवा हमारी प्रत्येक क्रिया जहाँ संस्कारोदयका कार्य है, वहां नवीन-संस्कारके बंधका कारण भी अवश्य है । बन्धके उपरान्त वह नष्ट नहीं हो जाता, प्रत्युत सत्तामें चला जाता है, इसलिये क्रियाके उस संस्कारमें बंधके साथ-साथ सत्त्व भी अवश्य है। इस प्रकार किसी एक ही क्रियामें बन्ध, उदय तथा सत्त्व ये तीनों करण युगपत् देखे जा सकते हैं। हमारी प्रत्येक क्रिया जहां नवीन बन्ध, उदय तथा सत्त्व इन तीनों की कारण अथवा कार्य है, वहां ही सत्तामें पड़े पुरातन संस्कारोंके अपकर्षण, उत्कर्षण अथवा संक्रमणकी भी कारण वहीं है। ऐसा नहीं है कि बन्ध, उदय, सत्त्व तो किसी अन्य परिणामसे होता है और अपकर्षण आदि किसी अन्य परिणामसे । इनका समय भी कोई भिन्न नहीं है। एक ही समयमें किसी एक ही परिणामसे जहां किसी नवीन संस्कारका बन्ध तथा सत्त्व निर्मित होता है, व्हां ही सत्तामें पड़े पुराने संस्कारोंका अपकर्षण, उत्कर्षण तथा संक्रमण भी अवश्य होता है। एक ही परिणामके द्वारा एक ही समयमें ये छहों बातें युगपत् होती हैं। - जहां अपकर्षण, उत्कर्षण तथा संक्रमण होता है वहां उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम होने स्वाभाविक हैं, क्योंकि ये तीनों अपकर्षण आदिके कार्य हैं। इतनी विशेषता है कि उपर्युक्त छः काम एक ही समयमें युगपत् होते हैं, परन्तु ये तीनों युगपत् नहीं होते । किसीएक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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