SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० २-कर्म खण्ड होकर आदत या टेवका रूप धारण कर लेना ही सैद्धान्तिक-भाषामें 'बन्ध' कहलाता है। इसमें चार विकल्प उत्पन्न किये जा सकते हैं-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग तथा प्रदेश । जिस जातिका संस्कार पड़ा है वह उसकी प्रकृति है और जितने कालके लिये पड़ा है वह उसकी स्थिति है । वह तीव्र है या मन्द है, तीव्रतर है या मन्दतर है यह उसका अनुभाग है और जितनी कार्मण वर्गणाओं पर उसका अंकन हुआ है, वे उसके प्रदेश हैं। __क्योंकि सकल कार्य हम प्रतिक्षण पुनः पुनः दोहराये जा रहे हैं, इसलिये बिना बताये नए-नए संस्कार उत्पन्न होते रहते हैं और पुराने संस्कार दृढ़ होते रहते हैं। ये सकल संस्कार उपचेतनास्वभावी कार्मण शरीरके महाकोशमें उस समय तक प्रसुप्त पड़े रहते हैं जबतक कि बाहरके किसी निमित्तको पाकर वे जागृत नहीं हो जाते । कार्मण शरीरमें अथवा उपचेतनामें कितनी जातिके संस्कार अंकित पड़े हैं यह कोई नहीं कह सकता। समाप्त होनेके कुछ ही देर पश्चात् कार्य क्योंकि विस्मृतिके गर्भमें चला जाता है, इसलिए कुछ एक अत्यन्त प्रधान कार्योंको छोड़कर हम यह भी नहीं जानते कि कल हमने क्या-क्या काम किए थे, किससे क्या कहा था, कहां गये थे, क्या विचारा था इत्यादि । जब कलके ही काम हमें याद नहीं तो सारे जीवनमें हमने कब क्या किया यह कैसे जान सकते हैं। फिर वे संस्कार तो केवल इस जन्म सम्बन्धी ही नहीं हैं, जन्म-जन्मान्तरोंसे जो कुछ भी हम करते आ रहे हैं उन सबके संस्कार इस अक्षय-कोशमें निहित हैं। अतः ये अनन्त ही नहीं अनन्तानन्त हैं। कार्मण शरीरका उपचेतनारूप यह अक्षय कोश ही सिद्धान्तमें कर्मोंकी सत्ता' के नामसे प्रसिद्ध है, जिसमें पूर्वसंचित सकल संस्कार फलोन्मुख होनेकी प्रतीक्षामें प्रसुप्त पड़े रहते हैं। __ सत्तामें स्थित इन प्रसुप्त संस्कारोंका जागृत अथवा फलोन्मुख हो जाना सिद्धान्तमें उनका उदय होना कहा जाता है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy