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________________ २-कर्म खण्ड कार्य या कर्मके पद-चिह्नका अर्थ यहाँ मिट्टीपर पड़े पदचिह्न जैसा कुछ नहीं है । कार्य या कर्मके कोई हाथ-पाँव नहीं होते जिससे कि उसकी पदाकृति जैसा कुछ चिह्न बन सके, न ही 'चित्त' मिट्टीकी भूमि जैसा कुछ है जिसपर कि वह चिह्न अंकित हो सके। यह केवल उसे समझने या समझानेके लिए उदाहरण मात्र हैं। क्योंकि चित्त तथा कर्म ये दोनों ही ज्ञानात्मक हैं, इसलिये उसका चिह्न भी ज्ञानात्मक ही कुछ है। साधारण भाषामें उसे हम आदत या टेव कह सकते हैं और शास्त्रीय भाषामें उसे धारणा अथवा संस्कार कहा गया है। जिस प्रकार टाइपकी मशीनपर कुछ काल पर्यन्त टिप-टिप करनेसे टाइप करनेकी आदत पड़ जाती है, जिस प्रकार कुछ काल पर्यन्त माताका सहारा लेकर चलनेसे बच्चेको चलनेकी आदत पड़ जाती है, जिस प्रकार कुछ काल पर्यन्त कोई एक भाषा बोलते-रहनेसे वह भाषा बोलने की आदत पड़ जाती है, उसी प्रकार यहाँ भी समझना। कार्य या कर्म कोई भी क्यों न हो, जाननेका हो, बोलनेका हो, कुछ करने-धरनेका हो अथवा किसी विषयको भोगनेका हो, निरन्तर होते रहने पर उसकी आदत पड़ जाती है। वह आदत ही 'संस्कार' शब्दका वाच्य है । जाननेके क्षेत्रमें इसे धारणा अथवा स्मृति कहते हैं और बोलने, करने अथवा भोगनेके क्षेत्रमें इसे संस्कार कहते हैं। भक्तामर आदि किसी पाठको पुनः-पुनः दोहराते रहनेसे अथवा किसी व्यक्तिको या घटनाको दो चार बार देखनेसे वे स्मृतिके विषय बन जाते हैं। यह ज्ञानगत धारणा कहलाती है । इसी प्रकार गर्दन लटकाकर चलनेसे उसी प्रकार चलनेकी आदत पड़ जाती है, पुनः-पुनः भैया बेटा आदि शब्द बोलते रहनेसे सबको भैया बेटा कहने की आदत पड़ जाती है, शराब सिगरेट पीते रहनेसे उसकी कुटेव पड़ जाती है। ये सब कर्मगत संस्कार कहलाते हैं । खोटे व्यक्तियोंकी संगति करनेसे खोटे संस्कार पड़ते हैं और साधु तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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