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________________ २३- भावकर्म १३१ पदार्थों को प्राप्त करने के उद्देश्यसे प्रवृत्त होनेके कारण माया तथा लोभ आकर्षक शक्ति से युक्त हैं, इसलिये रागमें गर्भित हैं । इसी प्रकार हास्य, रति और तीनों वेद भाव आकर्षक शक्तिसे युक्त होने के कारण राग हैं और अरति, शोक, भय, जुगुप्सा आदि विकर्षक शक्ति से युक्त होने के कारण द्वेष हैं । ३. बन्धक हेतु जिस प्रकार दर्शन शास्त्र में 'स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्धः' प्रसिद्ध है, उसी प्रकार आचार शास्त्र में 'रागद्वेषाद्बन्ध:' प्रसिद्ध है। यहां राग आकर्षण शक्ति से युक्त होनेके कारण स्निग्ध के स्थानपर है और द्वेष विकर्षण शक्ति से युक्त होनेके कारण रूक्षके स्थानपर है । जिस प्रकार परमाणुओं के मिल जाने मात्रसे वे बन्धनको प्राप्त नहीं होते, उनमें स्थित स्निग्धत्व तथा रूक्षत्वके योगसे ही वे बन्धको प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार कर्मों में प्रवृत्ति करने मात्रसे चित्त बन्धको प्राप्त नहीं होता, उन प्रवृत्तियों की पृष्ठभूमि में स्थित राग तथा द्वेषसे ही चित्त बन्धनको प्राप्त होता है । इसका तात्पर्य यह है कि रागद्वेषविहीन केवल प्रवृत्ति मात्रसे जो संस्कार कार्मण शरीरपर अंकित होता है, वह अगले क्षण में नष्ट हो जाता है। जबकि रागद्वेष-युक्त प्रवृत्तिसे होनेवाला संस्कार बहुत कालतक स्थित रहता हुआ चित्तको प्रवृत्ति करने के लिये प्रेरित करता रहता है । 'णय वत्थुदो बंधो, बंधो अज्झप्पजोएन ।' अर्थात् केवल वस्तुओंके संयोग-वियोगसे बन्ध नहीं होता है, अध्यवसानसे अर्थात् रागद्वेषात्मक कषायोंसे बन्ध होता है । भावात्मक होनेके कारण इन्हें भावबन्ध कहा जाता है । राग-द्वेष के विषय में भेद पड़ जाने के कारण उनके द्वारा होनेवाला बन्ध भी दो प्रकारका हो जाता है । ऐन्द्रिय विषयोंके क्षेत्रमें होनेवाले व्यावहारिक राग-द्वेषसे अशुभ या पाप बन्ध होता है, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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