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________________ २- कर्म खण्ड कह सकते हैं । यद्यपि शास्त्रोंमें इस शरीरका लक्षण केवल औदारिक शरीरमें कान्ति उत्पन्न करना है, तदपि उपलक्षणसे यहां उसके तीनों कार्योंका ग्रहण किया जा सकता है। अपने इस औदारिक शरीरकी त्वचापर हम जिस प्रकार कान्ति अथवा चमक-दमकका प्रत्यक्ष करते हैं, उसी प्रकार इसके भीतर पेटमें उदराग्निका भी अनुभव करते हैं, जिसके योगसे आमाशयमें. भोजनका पाक होता है और रक्तसंचारके माध्यमसे जिसके द्वारा नस-नसमें गर्मी बनी रहती है। जिस प्रकार कान्ति तैजस शरीरसे होती है उसी प्रकार यह गर्मी भी तैजस शरीरका ही कार्य है। इसका अभाव हो जानेके कारण मृत शरीरमें जिस प्रकार कान्ति नहीं रहती उसी प्रकार गर्मी भी नहीं रहती। . इसी प्रकार योगवाले पूर्व अधिकारमें कथित शरीरके अंगोपांगोंकी विविध क्रियायें भी तैजस शरीरका ही कार्य सिद्ध किया जा सकता है । चेतनाके योगसे तैजस-शरीर प्राण वायुको नस-नसमें पहुँचाता है। उसके द्वारा मांसपेशियों अथवा पट्ठों (Muscles) में कठोरता उत्पन्न हो जाती है जिसके फलस्वरूप हाथ पांव आदि क्रिया करने लगते हैं। भार उठाते समय बाहुके पट्टे और चलते समय जंघाओंके पट्टे कठोर हो जाते हैं, यह सर्व प्रत्यक्ष है। यह सकल कायें बिजलीके शरीरका है। ___ 'तैजस समुद्धातकी अवस्थामें योगीके बायें कन्धेसे जाज्वल्यमान अग्निका पुतला निकलकर बाहरी पदार्थको भस्म कर देता है' ऐसा शास्त्रोंमें उल्लेख पाया जाता है। इसी प्रकार आतप तथा उद्योतसे युक्त शरीरोंका भी कथन पाया जाता है, जुगनूके अतिरिक्त पर्वतोंमें अनेकों बड़े-बड़े जन्तु ऐसे पाये जाते हैं, जिनका शरीर चन्द्रमाकी भांति चमकता है। सागरोंमें अनेकों मछलियां ऐसी पाई जाती हैं जिनके शरीरसे प्रकाशकी किरणें निकलती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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