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२०- योग - विधान
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है परन्तु स्वयं उपयोग नहीं है । चेष्टा- स्वरूप होनेके कारण भावमन, भाववचन तथा भावकाय ही त्रिविध योग है । यह पहले बताया जा चुका है कि मन वचन काय कहनेसे कर्म-विधान के १४ करणों का ग्रहण हो जाता है । विस्तार करनेपर जो चौदह हैं वे ही संक्षेप करनेपर तीन हैं। इसलिये शास्त्रों में तीन योग प्रसिद्ध हैं— मनोयोग, वचनयोग और काययोग |
संकल्पपूर्वक समग्र में प्वायंट लगाना क्योंकि भावमनका काम है इसलिये उसके जीवित रहनेपर ज्ञातृत्व कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व ये तीनों प्रकारके कर्त्तव्य-कर्म बन्धनकारी हैं भावमनके मर जाने पर नहीं ।
* प्रतिक्रिया रहित संवेदन होने पर दुःख चक्र टूट जाता है ।
* ऋजु आत्मा शुद्ध होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म टिकता है।
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