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________________ २०- योग - विधान ११३ है परन्तु स्वयं उपयोग नहीं है । चेष्टा- स्वरूप होनेके कारण भावमन, भाववचन तथा भावकाय ही त्रिविध योग है । यह पहले बताया जा चुका है कि मन वचन काय कहनेसे कर्म-विधान के १४ करणों का ग्रहण हो जाता है । विस्तार करनेपर जो चौदह हैं वे ही संक्षेप करनेपर तीन हैं। इसलिये शास्त्रों में तीन योग प्रसिद्ध हैं— मनोयोग, वचनयोग और काययोग | संकल्पपूर्वक समग्र में प्वायंट लगाना क्योंकि भावमनका काम है इसलिये उसके जीवित रहनेपर ज्ञातृत्व कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व ये तीनों प्रकारके कर्त्तव्य-कर्म बन्धनकारी हैं भावमनके मर जाने पर नहीं । * प्रतिक्रिया रहित संवेदन होने पर दुःख चक्र टूट जाता है । * ऋजु आत्मा शुद्ध होती है और शुद्ध आत्मा में ही धर्म टिकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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