SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १११ २०-योग-विधान भाववचन मनका वह विकल्प है जिसकी प्रेरणा से कि कण्ठ तालु आदि क्रिया करते हैं। मनके इस विकल्पको बाहर में प्रकट करना ही द्रव्य-वचनका उद्देश्य होता है। जैसा कैसा भी वह विकल्प होता है वैसा ही वचन निकलता है। यदि वह विकल्प सत्य होता है तो वचन सत्य निकलता है, और यदि वह विकल्प असत्यः होता है तो वचन भी असत्य निकलता है। इसी प्रकार यदि विकल्प उभय रूप अर्थात् सत्य-असत्यसे मिश्रित होता है तो वचन उभयरूप निकलता है और यदि विकल्प अनुभयरूप होता है तो वचन भी अनुभयरूप निकलता है। चेतनाके उपयोग रूप होनेसे. वचन विषयक यह विकल्प ही भाववचन कहा जाता है। ४. काय जिस प्रकार मनके प्रकरणमें ज्ञानेन्द्रियोंका अन्तभाव होता है उसी प्रकार कायके प्रकरणमें कर्मेन्द्रियोंका अन्तर्भाव हो जाता है। ज्ञानेन्द्रियोंकी भांति कर्मेन्द्रियां भी दो-दो प्रकारकी होती हैंद्रव्यरूप और भावरूप । परमाणुओंसे निर्मित होनेके कारण हाथ पांव आदि द्रव्यात्मक हैं और उनकी पृष्ठभूमिमें स्थित चेतनाको वह योग-शक्ति भावात्मक है, जिसके द्वारा कि ये चेष्टा करते हैं। शरीरके क्रियाशील अंग होनेसे कायमें गभित हैं। कर्मेन्द्रियोंकी भांति द्रव्यात्मक ज्ञानेन्द्रिये और द्रव्यात्मक अन्तष्करण भी, क्योंकि शरीरके ही अंग है इसलिये उनका भी यहां ग्रहण हो जाता है। अर्थात् द्रव्येन्द्रियां तथा द्रव्य अन्तष्करण भी द्रव्यकायमें गर्भित हैं। विशेषता इतनी है कि उपयोगात्मक होनेके कारण उनके भावात्मक पक्षका कायमें ग्रहण होना सम्भव नहीं है। इस प्रकार. परमाणुओंसे निर्मित कर्मेन्द्रियां, परमाणुओंसे निर्मित ज्ञानेन्द्रियां और परमाणुओंसे निर्मित अन्तष्करण ये सब कायके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy