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१९-योग उपयोग है यह केवल समझानेके लिये कहा गया है, वास्तवमें वहां विषयविषयीका कोई भेद नहीं है।
विषयाकार होनेके कारण ज्ञान साकार होता है, जबकि निविषय होनेके कारण दर्शन निराकार है। विषयसे विषयान्तर होनेके कारण ज्ञान सविकल्प है, जबकि इससे निरपेक्ष होनेके कारण दर्शन निर्विकल्प है। काला पीला आदि विशेषोंकी प्रतीतिसे युक्त होनेके कारण ज्ञान सविशेष है जबकि निविषय होनेके कारण दर्शन निविशेष है। अहम् इदं के रूपमें विषयको अपने से पृथक् स्थापित करके देखनेके कारण ज्ञान बहिचित्प्रकाश है और केवल चिज्ज्योति मात्रकी अद्वैत प्रतीति होनेके कारण दर्शन अन्तचित्प्रकाश है। आत्माका शुद्ध-स्वरूप क्योंकि चिन्मात्र है, इसलिये दर्शनोपयोग ही वास्तवमें आत्मदर्शन या आत्मानुभूति है। भोक्तृत्व पक्षमें यही आत्माका भोग है। ध्यान की अवस्थामें 'मैं आत्माका दर्शन कर रहा हूं' इत्याकारक जो आत्मदर्शन होता है, वह आत्मदर्शन नहीं बल्कि उसकी कल्पना है और इसलिये वह ज्ञानोपयोग है, दर्शनोपयोग नहीं। ४. योग ___यद्यपि प्रसंगवशात् उपयोगका कथन कर दिया है तदपि कर्म तथा क्रिया के पक्षमें योग ही प्रधान हैं उपयोग नहीं। उपयोग इसकी पृष्ठभूमिमें रहता है। ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्वका ग्रहण भी यहां कर्मके रूपमें किया गया है, जानने मात्रके अथवा आत्मानुभवके रूपमें नहीं। समग्रको युगपत् जानना तथा आत्मा का अनुभव करना भी यद्यपि ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्व हैं, तदपि कर्मके प्रकरणमें जिस ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्वका ग्रहण किया गया है वह क्रिया रूप अर्थात् प्रवृत्तिरूप है। समग्रमें प्वायंट लगाकर जानना ज्ञातृत्वमात्र न होकर ज्ञातृत्व क्रिया है क्योंकि इस प्रकारके ज्ञानमें विषय
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