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________________ Pc २-कर्म खण्ड व्यवस्था करते हैं। दसों इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन की स्वामिनी बुद्धि है । बुद्धि का स्वामी चित्त है और चित्त का अहंकार । दूसरे प्रकार से कहें तो अहंकार राजा है, चित्त उसका मित्र है और बुद्धि प्रधान मन्त्री । मन इन दोनों मन्त्रियों का सेक्रेटरी है । इन्द्रियां उनके अधीन विभिन्न विभागोंकी अधिकारिणी मनका काम मनन करना है, बुद्धिका काम सत्य असत्य का विवेक करना है, चित्त का काम भूत-भावी की चिन्ता करना और अहंकार का काम अपने इष्ट विषय को भोगना है; अथवा मेंमेरा तू-तेरा आदिकी मोहरें लगाकर उन विषयों पर अपना स्वामित्व स्थापित करना है। इनका विशद स्पस्टीकरण इन चारों की कार्यवाहीका अध्ययन करने से हो जायेगा। स्वामी-भक सेविकाओं की भांति ज्ञानेन्द्रिय अपने-अपने प्रतिनियत विषय को ग्रहण करके उसे अपने स्वामी मन के प्रति हस्तान्तरित कर देती हैं। इस विषय के प्राप्त होने पर क्या, क्यों, कसे आदिके अनेकों विकल्प उठाकर वह उसका सर्व ओरसे निरीक्षण तथा परीक्षण करता है । यही उसका मनन कहलाता है । मनन कर चुकनेपर वह उसे चित्तकी प्रयोगशालामें भेज देता है। वह भूतकी स्मृतियोंके साथ तथा भावीकी सम्भावनाओंके साथ मिलान करनेके लिये उसे कसौटी पर कसता है। आगे जानेपर यह कदाचित् मेरे मित्र अहंकारको हानि तो नहीं पहुंचायेगा, अथवा जितना लाभ उसे पहुँचाना चाहिये उससे कुछ कम तो नहीं करेगा। नहीं नहीं ऐसा कुछ होनेवाला नहीं है, लाभ ही होगा, हानि नहीं, इत्यादि। अपना काम कर चुकनेपर चित्त उसे अपने मित्र अहंकारको भोगशालामें भेज देता है। में-मेरा, तू-तेरा, इष्ट-अनिष्ट आदि रूप बन्दोंकी मुद्रासे अंकित करके यह उसे अन्तिम निर्णयके लिये अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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