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शीर्षकों, उपशीर्षकों तथा अबान्तर शीर्षकों में विभक्त वे समस्त सूचनायें इसमें निबद्ध हैं जिनकी कि किसी भी प्रवक्ता, लेखक अथवा संधाता को आवश्यकता पड़ती है । शब्द का अर्थ, उसके भेद-प्रभेद, कार्य-कारणभाव, हेयोपादेयता, निश्चय व्यवहार तथा उसकी मुख्यता गौणता, शंका समाधान, समन्वय आदि कोई ऐसा विकल्प नहीं जो कि इसमें सहज उपलब्ध न हो सके। विशेषता यह है कि इसमें रचयिताने अपनी ओर से एक शब्द भी न लिखकर प्रत्येक विकल्पके अन्तर्गत अनेक शास्त्रोंसे संकलित आचार्योंके मूल वाक्य ही निबद्ध किए हैं। इसलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि जिसके हाथ में यह महान् कृति है उसके हाथमें सकल जैन - वाड्मय है ।
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोशका अब तृतीय संस्करण प्रकाशित हुआ है । इसे भोपालकी जैन समाज ने देश-विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों को अपनी धनराशि से उपलब्ध कराने का प्रबन्ध किया है । इसका पंचम इण्डैक्स खण्ड, भारतीय ज्ञानपीठ से शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है । जैन दर्शनके अध्येताओं के लिये श्रद्धेय वर्णी जी की यह अभूतपूर्व देन है ।
सुरेश कुमार जैन पानीपत
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