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________________ पाँचवाँ रूप वे कई हजार स्लिपें थी जो कि जैनेन्द्र प्रमाण कोश तथा इस रूपान्तरणके आधारपर वर्णी जी ने ६-७ महीने लगाकर तैयार की थी तथा जिनके आधारपर अन्तिम रूपान्तरण की लिपि तैयार करनी इष्ट थी। इसका छठा रूप यह है जो कि 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' के नामसे आज हमारे सामने है। यह एक आश्चर्य है कि इतनी रुग्ण कायाको लेकर भी वर्णी जो ने कोष के संकलन, सम्पादन तथा लेखनका यह सारा कार्य अकेले ही सम्पन्न किया है। सन् १९६४ में अन्तिम लिपि लिखते समय अवश्य आपको अपनी शिष्या ब्र० कुमारी कौशल का कुछ सहयोग प्राप्त हुआ था, अन्यथा सन् १९४९ से सन् १९६५ तक १७ वर्षके लम्बे कालमें आपको तृण मात्र भी सहायता इस सन्दर्भ में कहीं से प्राप्त नहीं हुई । यहाँ तक कि कागज़ जुटाना, उसे काटना तथा जिल्द बनाना आदि का काम भी आपने अपने हाथ से ही किया। . यह केवल उनके हृदयमें स्थित सरस्वती माता की भक्तिका प्रताप है कि एक असंभव कार्य भी सहज संभव हो गया और एक ऐसे व्यक्तिके हाथसे संभव हो गया जिसकी क्षीण कायाको देखकर कोई यह विश्वास नहीं कर सकता कि इसके द्वारा कभी ऐसा अनहोना कार्य सम्पन्न हुआ होगा। भक्ति में महान् शक्ति है, यही कारण है कि वर्णीजी अपने इतने महान् कार्यका कर्तृत्व सदा माता सरस्वतीके चरणों में समर्पित करते आये हैं और कोश को सदा उसी की कृति कहते आये हैं। यह है भक्ति तथा कृतज्ञताका आदर्श यह कोश साधारण शब्द-कोश जैसा कुछ न होकर अपनी जाति का स्वयं एक ही कोश है। शब्दार्थ के अतिरिक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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