________________
१६. करणानुयोग
१. अन्य अनुयोग ___ जैन वाङ्मयके चार प्रधान विभाग हैं जिन्हें चार अनुयोग कहते हैं-प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग । इन चारोंका नामोल्लेख आचार्योंने इसी क्रमसे किया है। इसलिये इनका अध्ययन भी इसी क्रमसे करना चाहिये। "क्रमका उल्लंघन करनेपर व्यक्ति को ज्ञानाभिमान हाथ आता है, जीवनोत्थान नहीं। जिस प्रकार एम० ए० का विषय मैट्रिकमें और मैट्रिकका विषय एम० ए० में पढ़ाया जाये तो विद्यार्थी शब्द के अतिरिक्त कुछ भी ग्रहण नहीं कर पाता, उसके जीवनका विकास नहीं होता, उसी प्रकार यहां भी समझना । चार अनुयोगोंका यह क्रम जीवन-विकास को दृष्टिमें रखकर किया गया है ।
प्रथमानुयोगमें महापुरुषोंकी जीवनियां निबद्ध हैं, जो कथा तथा उपन्यासकी भांति रोचक होनेके साथ-साथ जीवनके लिये प्रेरक भी हैं। आत्म-कल्याणकी दृष्टिसे इसे पढ़नेवाले विद्यार्थीको जीवनकी प्रेरणायें मिलती हैं। जीवन-विकास के मार्गमें इन प्रेरणाओंका बहुत बड़ा मूल्य है, क्योंकि अन्तः प्रेरणाके बिना
-८७ -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org