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२-कर्म खण्ड कोई पारमार्थिक भेद नहीं है, जो अध्यात्म-शास्त्र कहता है वही कर्म-शास्त्र कहता है। अध्यात्म-शास्त्र भी बाह्याभ्यन्तर-जगतकी तात्त्विक-व्यवस्थाका परिचय देता है और कर्म-शास्त्र भी। अन्तर केवल इतना है कि अध्यात्म-शास्त्र केवल अनुभव-गम्य अत्यन्त स्थल बातोंका विवेचन कर पाता है जबकि कर्म-शास्त्र उन स्थूल तथ्योंके भीतर घुसकर उनकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म सन्धियोंको पकड़ता है। समयसारमें भगवान् अमृतचन्द्र ने सूक्ष्म सन्धिको विभक्त करनेके लिये जिस प्रज्ञा छैनीका प्रयोग किया है अथवा जिसके प्रति संकेत दिया है उसका तात्पर्य वास्तवमें कर्म-रहस्य तथा कर्मसिद्धान्त हो है अथवा यों कह लीजिए कि समयसार आदिक आध्यात्मिक शास्त्रोंमें कथित सूक्ष्म संकेतोंके रहस्य अथवा अर्थको समझनेके लिये कर्म-रहस्यका तथा कर्म-सिद्धान्तका अध्ययन अनिवार्य है।
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