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________________ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ७ वेगा. ललितविस्तरामें कहा है के, यद्यपि जिनका कायोत्सर्ग करीयें है, वे कायोत्सर्ग करतेकों नही जानते है, तोनी तिसके करणेसें गुजसिदि होती है. इस कथनमें वैयावृत्त्यकराणं यही सूत्र झापक प्रमाणनूत है. ___ अब बुद्धिमानोकों विचारणा चाहिये के संघाचा रवृत्तिके इन पूर्वोक्त दोनो लेखोसें सम्यकदृष्टि देव ताका कायोत्सर्ग करणा, और इनकी थुइ कहनी इन दोनो बातोमें किसीनी जैनधर्मीको शंका रह स कती है. के सम्यक्दृष्टि देवताका कायोत्सर्ग जैनम तके शास्त्रमें करणा कह्या है के नही कह्या है ? श्न पूर्वोक्त पाठोसें निश्चे सिम होता है के साधु,साध्वी, श्रावक, श्राविकाने सम्यदृष्टि देवताका कायोत्सर्ग अवश्यमेव करणा. , अब रत्नविजयजी जो नोले लोकोंको कहते फि रते है के, इन पागेसें हमारा मत सिम होता है, ऐसा कपट बल करके नोले जीवांकू कुपथमें गेरना यह क्या सम्यग्दृष्टि, संयमी, सत्यवादी, नवनीरु, धूर्ततासे रहितोंके लक्षण है ? बनिये, बिचारे कुन पढे तो नहीं है, इसवास्ते इनकू क्या खबर है Jam Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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