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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
नके संमोहार्थे लघुभाष्यकार प्रगट करते हैं ॥ गाथा || नव हिगारा इह ललि, यविवरा वित्तिमाइ असारा ॥ तिन्नि सुयपरंपरया, बीउ दसमो इगार समो ॥ ३५ ॥
इहां बारा अधिकारमेंसें पहिला, तीसरा, चौथा, पांचमा, बघा, सातवा, यावहवा, नवमा अरु बा रहवा, यह नव अधिकार ललितविस्तरा नामा चैत्यवं दनाकी जो मूलवृत्ति है तिसके अनुसारसें कथन करे हैं ॥ तथाच तत्रोक्तं । यह तीन थुइयां सिद्धाणं इत्यादि जो है सो निश्चयसें कहनी चाहियें, और कितनेक आचार्य अन्य थुश्यांनी इनके पीछें कहते है. परं तहां नियम नहीं है के अवश्य कहनी इस वास्ते मैने तिनका व्याख्यान नही करा है. सें यह "सिद्धाणं बुद्धा” पाठ पढके उपचित पुष्य समू हसें जरा दूया उचितो विषे उपयोग करनां यह फल है. इसके जनावने वास्ते यह पाठ पढे.
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वेयावच्चगराणं इत्यादि ॥ इहां वली 'एता' से शब्दसें १ सिद्धाबुदाणं, २ जो देवाण विदेवो, ३ इक्कोवि नमुक्कारो, अन्यायपि इस शब्दसें १ उयंत से ल०" ॥ २ चत्तारी ४० ॥ तथा ३ जेय अईया
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