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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ६१ प्पेरं समंता, पासायतलहियो निय३ ॥ २ ॥ तास हसा तंप पव,णपडिहयं द चिंत विरत्तो ॥ खण दिनहरूवा, अहह कहं सचनावहिई ॥३॥ तथा हि-संपचंपकपुष्परागति रतिर्मत्तांगनापांगति, स्वाम्यं पद्मदलाग्रवारिकणति प्रेमा तडिदंडति ॥ लावल्यं करिकर्णतालति वपुः कल्पान्तवातनम, दीपहायति यौवनं गिरिणदीवेगत्यहो देहिनाम् ॥ ४ ॥ श्य चिं तिनं सविणयं, विणयंधर सुगुरुपास गहियवक ॥ गीयबो विहरतो, पत्तो सकयावि मदुरपुरि ॥ ५ ॥ तब हिक चळमासं,कुबेरदत्ताइ देवयाइ गिहे ॥ उत्तच तवचरणरज, निरन यावणविहाणे ॥ ६ ॥ विग हा निदाश्पमा, य वजि उयु सुहानाणो ॥ वासी चंदणकप्पो, समोयमाणा वमाणोय ॥ ७ ॥ तं दह हन्तुहा, कुंबेरदत्ताह जो मुणिवरित॥ पसियमहकहसु किंते, करेमि मणबियं कथं ॥॥ जण मुणीनचिय ब. नावन्नू दववित्तकालनू ॥ मंवंदाव सुजहे, सुमेरुसि हरिहिए देवे ॥ ए॥ देवी नणे एवं, करेमि करसंपुडेग हिकण ॥ ने सुमेरु सिहरे, लदुबंधावे सितं देवे ॥ ॥ १० ॥ आद मुणिक दुधिद, थीसंघट्टो वया यारकरो ॥ तामस्त वम्मसीले, अलं मब मणो
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