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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। विजयजी धनविजयजीके कहनेंकू कौन बुद्धिमान स त्य मानेगा. क्योंके रत्नविजय अरु धनविजयजीकू स मजावने वास्ते जेकर महाविदेह देवसें केवलीनग वान यावे असा तो संभव नही है परंतु पूर्वाचार्यों के वचन कपर प्रतीति रखनी चाहियें सो तो इन दोनोकों नही है तब इनका मत सम्यकदृष्टी पुरुषतो कोश्नी नही मानेगा.
तथा श्रीश्रणदिल्लपुर पाटण नगरें फोफलवाडा नांमागारे प्राचीनाचार्यकृत सामाचार्याका पुस्तक . है, तिनका पाठ यहां लिखते है ॥ ___जिणमुणिवंदण अश्या, रुस्सग्गो पुत्तिवंदणालोए ॥सुत्तेवंदण खामण, वंदण चरणा उस्सग्गो ॥४॥ उलोअशक्तिका, सुअखिनस्सग्ग पुत्ति वंदपए ॥ शुद्ध तिथ नमुबत्तं, पति तुस्सग्गु सनान ॥५॥ पुनरपि अ पहिल्लपुरपट्टननगरे फोफलवाडा नांमागारे कालि काचार्य संतानीय जावदेवसूरि विरचित यतिदि नचर्यायां अथ देवसिक प्रतिक्रमणस्य स्वरूपं निरूप यति ॥चेश्य वंदणजयवं, सूरि उवनाय मुणि खमासम णा ॥ सबसवि सामाश्य, देवलिय अश्यार नस्सग्गो ॥ ३३ ॥ व्याख्या-तत्रादौ चैत्यवंदनं अरिहंत चे
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