SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ . चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ___ तथा श्रीउत्तराध्ययनकी वृहदवृत्तिकार श्रीशांति सूरिजीने संघाचार चैत्यवंदना महानाष्यमें चोथी शु का पूर्वपद उत्तरपद करके अन्जी तरेसें स्थापन क रा है.सोनाष्यका पाठ यहां लिखते है॥ वेयावज्ञगरा एं संतिगराणं सम्मदिहि स॥अन्नबका ॥ वेयाव चंजिणगिह, ररकण परिवणाजिकिच्च॥ संतीपड पीयकन, उवसग्गविनिवारणं नवणे ॥७६॥ सम्मदि ही संघो. तस्स समाहमणो उहाजावो ॥ एएसिकर एसीला, सुरवरसाहम्मिया जे न ॥ ॥ ७ ॥ तेसिं समाजवं, कानस्सग्गं करेमि एताहे ॥ अन्नवससि याई, पुवत्तागार करणेणं ॥ ७॥ एबन जणेय कोई, अविरगंधाणताणमुस्सग्गो ॥ नदु संगबर अम्हं,सा वयसमणेहिं कीरत्तो ॥ ७ए ॥ गुणहीणवंदणं खलु, न दु ज्जुत्तं सव्वदेस विरयाणं ॥ जण गुरु सच्चमिणं, एत्तो चियएउ नहि नणियं ॥ ७० ॥ वंदण पूयण सक्का, रणाइ हेनं करेमिकास्सग्गं ॥ वबलं पुणजुत्तं, जिणमयजुत्ते तणुगुणेवि ॥ १ ॥ ते दुपमत्ता पायं, काउस्सग्गेण बोहिया धणियं ॥ पडिउद्यमंति फुड, पाडिहेर करणे दबाह ॥ ७ ॥ सुच्च सिरिकंताए, मणोरमाए तहा सुनदाए ॥ अनयाइणं पि कयं, स Jain Education International For Private & Person www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy