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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
साहवंति तव श्रागम्म चेश्य घरं गवंति चेश्यालि वंदित्ता संतिनिमित्तं यजिय संतियं पढंति तिन्नि वा युतीन परिहायमासीन कट्टियंति त गंतु या यरियसगासे विहि विगिंच लियाए काउस्सग्गो की 5. इत्यावश्यकवृत्तौ ॥
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अस्य जाषा ॥ ते मृतक साधुके परिहवनेवाले साधु चैत्यघरमे प्रथम परिहायमान तीन थुइसें चे त्यवंदना करके याचार्य के समीपें “ इरियावहियं पक्किमिके विधि पारिछावणीयांका कायोत्सर्ग क रे ॥ मंगलपन - ६० ॥ तद पीठें अन्यत् अपि दो हाय मा न कहे, उपाश्रयी जैसेही करना परं चैत्यवंदना न करण यह कथन बृहत्कल्पके चतुर्थ नद्देशेक चूर्णीमें है, और बृहत्कल्पकी विशेष चूर्मिमें तथा कल्पवृहद्भाष्यमें तथा आवश्यकवृत्तिकारें अन्यथा व्याख्यान करा है, सो यह है ॥ चैत्यवंदनाके अनं तर अजितशांतिस्तवन कहना जेकर यजितशांतिस्त वन न कहे तो तिस अजितशांतिके स्थान में अन्यत् हायमान तीनथुइ कहनी, सोइ दिखाते है, ॥ चेश यघरगाहा ॥ चैत्यघरमें जावे तहां चैत्यवंदना कर के शांतिके निमित्त अजितशांतिस्तवन कहना, अथ
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