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________________ १८ चतुर्थस्तुति निर्णयः । चेश्य दंमय थुइए, गसंगया सह ममिया ॥ ५६ ॥ मम हा सच्चिय, तिन्नि थुई व सिलोय तियजुत्ता ॥ नक्कोस कहिा पुष्ण, सच्चिय सक्कबाइ जुया ॥ ५७ ॥ थुइ जुयल जुयल एणं, डुगुणिय चेश्य थयाइ दंमा जा ॥ सा चक्कोस विजेठा, निद्दिा पुन्वसूरीहिं ॥ ५८ ॥ थोत पशिवाय दंग, पणिहाण तिगेल संजुप्राएसा ॥ संपुन्ना विनेया, जेठा नक्कोसिया नाम ॥ ५ ॥ इनकी जाषा । एक नमस्कार करनेसें जघन्यजघ न्य प्रथम नेद ॥ १ ॥ यथाशक्ति बहुत नमस्कार कर नेसें जघन्यमध्यम दूसरा नेद ॥ २ ॥ नमस्कार पीछे शक्रस्तव कहना, यह जघन्योत्कृष्ट तीसरा नेद ॥ ३॥ इरियावही, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंमक एक, ए कस्तुति यह कहने से मध्यमजघन्य चोथा नेद ॥ ४ ॥ इरियावदी, नमस्कार, शक्रस्तव, चैत्यदंमक, एक थुई, लोगस्स कहने से मध्यममध्यम पांचमा नेद ॥ ५ ॥ इरियावदी, नमस्कार, शक्रस्तव, अरिहंत चेश्याएं थुई, लोगस्स सबलोए थुई, पुरकरवर सुयस्स थुई, सि 3 बुदाणं गाया तीन इतना कहनेसें मध्यमोत्कृष्ट बाजेद ॥ ६ ॥ इरिया वही, नमस्कार, शक्रस्तवादिदमक पांच, स्तुति चार, नमोबुएं, जावंति एक, जावंत एक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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