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चतुर्थ स्तुति निर्णयः ।
लिखते हैं | ताहे दिसा नागममुपंता वालवुढ गनुस्स ररकणठाए वणदेवताए काउस्सग्गं करेंति । इत्यादि. तथा श्रीहरिनसुरिजीने श्रुतदेवताकी चौथी थु 5 रची है. “ यामुनालोलधूली ” इत्यादि, यह खुइ जैनमतमें प्रसिद्ध है.
तथा श्रीयामराजा ग्वालियरका तिस्का प्रतिबो धक श्रीवपट्टसूरि महाप्रजावक हुए हैं तिनोंका जन्म विक्रम संवत् ८०२ में हुआ है तिनोने एकैक तीर्थंकर के नामसें तथा संबंधसें प्रथम थु, दूसरी सर्व तीर्थकरोकी छु, तीसरी श्रुतज्ञानकी शु, अरु चौथी श्रुतदेवी, विद्यादेवी आदिककी थुइ इसतरें चौवीस चोक बांनवें शुइयां रचीयां है, तिनमें सर्वत्र चोथी थुइयोंमें अनुक्रमसें इन देवी देवतायों की स्तव ना करी है. तहां श्रीरूपनदेवके संबंधकी चौथी यु इमें वाग्देवताकी थुइ है. श्री अजितनाथके साथ अपराजिता देवीकी छुइ है, ऐसेही रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रश्रृंखला, वज्रांकुशी, प्रतिचका, काली, मान वी, पुरुषदत्ता, महाकाली, गौरी, गांधारी, मानसी, महामानसी, काली, महाकाली, वैरोट्या, वाग्देवता, श्रुतदेवी, गौरी, अंबा, यराट्, अंबिका, इसतरें अनु
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