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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १७१ करणा कहा है. चातुर्मासीमे एकैक नवनदेवताका कायोत्सर्ग करते है, और संवत्सरीमें नवनदेवता, देवदेवताका कायोत्सर्ग करते है यह कथन श्राव श्यकचूर्मिमें है.
तथा आगममें आवश्यकचूमिमे श्रुतदेवताकी विनय नक्ति करनी कही है. सो पाठ ऊपर लिखा है तथा जो श्रुतदेवी दृष्टि देने मात्रसें जगवंतकी आशामें रत पुरुषोंकें नर सुरकी कड़ि देती है. यह कथन अाराधनापताका ग्रंथमें है.
तथा श्रुतदेवी हमको ज्ञानकी दात्री होवे यह क थन श्रीउत्तराध्ययनकी बृहछत्तिमें है.
तथा जिनवरें श्रीमहावीरकों,तथा श्रुतदेवताकों तथा गुरुओंकों नमस्कार करके आवश्यक सूत्रकी वृत्ति रचता हूं ॥ इति हारिनडीयावश्यकवृत्तौ ॥ ___ तथा जिन श्रुतदेवीका अतुल्य प्रसाद अनुग्रह क रके जव्य जीव जो है सो अनुयोगके जानकार होते है तिस श्रुतदेवीकों में नमस्कार करता हूं, यह कथन श्रीअनुयोगधारकी वृत्तिमें है. तथा श्रीनिशीथचू र्मिके शोलमें उद्देशेमें नाष्यचूर्णिमें साधुयोंकों वन देवताका कायोत्सर्ग करना कहा है, सो पाउ यहां
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