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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १६ए इसकी नाषा लिखते है. सूत्रकी समाप्तिमें श्रुत देवीकों विज्ञापना करते है. सुब० ॥ श्रुतदेवता श्रु तकी अधिष्टात्री, देवी जगवती पूजने योग्य तिस्कू विनंति करते हैके ज्ञानावरणीय कर्मके समूहकों हे श्रुतदेवी तुं निरंतर दय कर दे, जिनपुरुषोंके जगवं तनाषित श्रुतसागरविषे जक्ति बहुमान है तिन पुरु षोंके झानावरणीयकर्मका समूहकों दय कर दे. इस पाठमें श्रुतदेवीकी विनंति करे तो ज्ञानावरणी यकर्मक्य होवे, ऐसा कहा है. इसवास्ते जो कोई श्रुतदेवीका कायोत्सर्ग और तिस्की शुश्का निषेध करता है, सो जिनमतके ज्ञानरूप नेत्रोंसे रहित है, ऐसा जानना. परंतु ऐसा जोले लोगोकों न कह नाकि यह हमारी निंदा करी है ? परंतु अपने हृद यमें कुब विचार करके मुखसें कथन करना तो सब तरहेंसें सुखदा होवेगा, जिसमें आपकों बहुत लान होवेगा, उलटा पासा आपका पड़ा गया है, तिसकों सुलटा करणासो आपकेही हाथ है सो अपबूज जावेगें अरु शुझमार्गकी राहपर चलेगें यह हमारा मनोरथ है सो आपकों उत्तम सुखके दाता है.
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