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________________ १६७ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। बोध करनेवालेकूनी बडा पूण्योपार्जन रूप लान हो जावे ऐसा नगवानका कथन है. हमकों बडा आश्चर्य होताहैकि पाटण खंबाता दिक शहेरोमें बडे बडे ज्ञानके जांमागारोंमें ताडप त्रोंके ऊपर पुराणी लिपियोंमे लिखे हुए ग्रंथ मोजु द है तिन सब ग्रंथों में सम्मदिछी देवा” यह पद लिखा दूया है. तो जिस पुरुषकों तिन पदकी जगें न वीन पद प्रदेप करतेजी कुछ जय नही आता है, प रंतु और इस्से आनंद मान लेता है तो फेर तिसकों अन्य पाप करणेसेंनी क्या जय होवेगा? जो अन्या यमें आनंद माने तिसकों न्यायवचन कैसे प्रिय लगें? तथा श्रीपादीसूत्रका पाठ यहां लिखते हैं। सुथ देवया नगवई, नाणावरणीयकम्मसंघायं ॥ तेसिं खवेन सययं. जेसिं सधसायरे जत्ती॥१॥ व्याख्या॥ सूत्रपरिसमाप्ती श्रुतदेवतां विज्ञापयितुमाह सुअ० श्रुतदेवता संनवति च श्रुताधिष्ठातृदेवता जगवती पू ज्या ज्ञानावरणीयकर्मसंघातं ज्ञानघ्नकर्मनिवहं तेषां प्राणिनां कृपयतु क्यं नयतु । सततं येषां श्रुतमेवात गंनीरतया अतिशयरत्नप्रचुरतया च सागरस्तस्मिन जक्तिबहुमाना विनयश्च समस्तीति गम्यते ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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