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१६६ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। __ अब इनका उत्तर प्राचार्य देते है. हे जव्य तेरा कहना सत्य है. किंतु हमतो जैनमति है, और जै नमत स्याहादप्रधान है, सामग्री वैजनिकेति वचना त् ॥ तहां घटनिष्पत्तिमें मृत्तिकाके योग्यता होनेसें जी कुंजकार, चक्र, चीवर, मोरा, दमादिनी तहां का रण है. जैसे यहांनी जीवके योग्यताके हूएनी ये पूर्वोक्त देवता तिस तिस तरेके विघ्न दूर करनेसें स माधि बोधि देनेमें निमित्तकारण होते है. इस वास्ते तिनकी प्रार्थना फलवती है. इति गाथार्थः॥४७॥ - इस आवश्यककी मून गाथामें तथा इसकी चूर्णि में प्रकट पणे समाधि और बोधिके वास्ते, सम्यगह ष्टी देवतायोंकी प्रार्थना करनी कही है. तो फेर यह ग्रंथों सब पूर्वाचार्योंके रचे हुए हैं सो किसी प्रकारसें जूना नही हो शकता है,परंतु हमने सुना है कि रत्नवि जयजीअरु धनविजयजीने “सम्मदिही देवा” इस पद की जगें कोई अन्यपदका प्रदेप करा है, जेकर यह कहेनेवालेका कथन सत्य होवे तबतो इन दोनोकों उत्सत्र प्ररूपण करणेका और संसारकी वद्धि होने का नय नही रहा है, यह बात सिम होती है तो अ ब सानोकों यह विचार रखना चाहीयेंके सूत्रोंका प
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