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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
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है, तैसें सर्व धर्मो का मूल समाधि ह. समाधिविना जो अनुष्ठान है सो सर्व ज्ञान कष्ट रूप है, इस वास्ते पूर्वोक्त देवतायोंसें समाधि मागते है, वो स माधि तो मनके स्वस्थपरोसें होती है, और म नका स्वस्थपणा तब होवें जब शारीरिक तथा मानसिक, दुःख न होवे, और भूख, खांसी, श्वास, रोग, शोष, ईर्ष्या, विषाद, प्रियविप्रयोग, शोक प्रमुख करके विधुर न होवे, तब स्वस्थपणा होवे इस वा स्तं परमार्थ समाधी प्रार्थनाद्वारें इन पूर्वोक्त उपड़वोंका निरोध प्रार्थन करा है.
ननु वितर्के हे प्राचार्य, सम्यग्रदृष्टी देवतायोंकी इसतरें प्रार्थना करनेसें वो देव, वो समाधि बोधि दे नेकों समर्थ है ? वा नही है ? जेकर समर्थ नही ala aadi Sata प्रार्थना करनी निष्फल है, रु जेकर समर्थ है तो पुर्नव्य अनव्यकोंनी क्यों नही देते है. जेकर तुम मानोगेंकी योग्य जीवोंकोंही देने कूं समर्थ है, परंतु योग्य जीवोंकूं देने समर्थ नहीं है, ततो योग्यताह । प्रमाण हुइ, तब बकरी के गले के स्तन समान तिन देवतायोंकी काहेकों प्रार्थना करनी चाहियें ?
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