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इस ग्रंथ में जे जे शास्त्रोंकी साख दिनी है तिसका नाम.
यहां कहीं कहीं एक ग्रंथका जो दोवार तीन वार नाम लिखा है, सो न्यारे न्यारे प्रयोजन वास्ते है. कहीं चौथी थुइ वास्तें, कहीं श्रुतदेवता देवदेवता वा स्ते, कहीं सप्तवार चैत्यवंदनाकी गिनती वास्ते, इत्यादि अन्य अन्य प्रयोजनके वास्ते कहीं कहीं किसी किसी ग्रंथके दो तीन वार नाम लिखे है. इस वास्ते पुनरुक्त है ऐसा समजना नही ॥ १ धर्मरत्न देवेंइरिकत. २ जीवानुशासन श्रीदेवसूरिकृत. ३ श्रीमहानिशीथ गणधरकृत. ४ पंचाशक हरिजसूरिकृत.
५ महानाष्य शांत्याचार्यकृत.
६ विचारामृत संग्रह श्री कुलमंमनसूरिकृत. ७ प्रवचनसारोशरसूत्रवृत्ति श्रीनेमिचं रिकृत मू ल और श्री सि-६ सेनसूरिकृतवृत्ति.
८ पुनः पंचाशकवृत्ति श्री अजयदेवसूरिकृत.
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