________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १५१ चाहना रखता है उसका बोल असंमजस मूर्योके टो लेमें तो इबामाफक कनी प्रमाणनी होजावे परंतु विवेकी जनोके आगे तो अत्यंत निस्तेज हो जाता है. जुना कनी सच्चा नही होता है. ___ अब इनोके कहे मुजब पंचांगी माननेसें तो श्रुत देवता, क्षेत्र देवता अरु नवनदेवताका कायोत्स गर्गादिकका करना सिम नही होता है परंतु हम सत्य कह देते है कि इनोने जो यह समज अपने दिलमें निश्चित करके रस्का हैं सोनी नोकी असत्य कल्पनाही जान लेनी परंतु सापेद कल्पना नही है. हम पंचांगोके पाठसेंही पूर्वोक्त देवतायोंका कायोत्सर्ग करना प्रमाण हैं ऐसा सि६ कर देते हैं.
तिसमें प्रथम तो श्रीआवश्यक सूत्रकी नियुक्ति, चूर्णि और टीकाका प्रमाण लिखते हैं ॥ चानम्मा सि य वरिसे, उस्सग्गो खित्तदेवयाए य ॥ परिकय सिज सुराए, करेंति चमासिए वेगे ॥ १॥ अस्य व्याख्या ॥ चान ॥ देवदेवतोत्सर्ग कुर्वति ॥ पादिके शय्यासुर्याः ॥ केचिच्चातुर्मासिके शय्यादेव ताया अप्युत्सर्ग कुर्वति ॥ नाषा ॥ कितनेक आ चार्य चातुर्मासी तथा संवत्सरिके दिनमें देवदेव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org