SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थस्तुति निर्णयः । १२३ हिय सिरोसयला, इयार मिठोकडं देइ ॥ २ ॥ सामा इय पुत्र मिला, मी वाइनं कानस्सग्गमिच्चाई || सुत्तं न यि पलंबिय, जु कुप्परधरियप हिरण जं ॥ ३ ॥ घोडगमाई दोसेहिं, विरहीयंतो करेइ उस्सग्गं ॥ ना हिग्रहो जाएढं, चनरंगुल वरिय कडिपट्टो ॥ ४ ॥ तयधरे हियए, जहकमं दिए ईयारे ॥ पा रेतु नमुकारेण, ( इति प्रथममावश्यकम् ॥ १ ॥ पढइ चवियदमं ॥ ५॥ इति द्वितीय मावश्यकम् ॥ २ ॥ संमासगे पमयि, नवविसिय अलग्ग विय य बाहुजु ॥ मुहणं तगं च कार्य, च पेहए यंच विस हा ॥ १ ॥ उहियति सविषयं, विहिया गु रुणो करे कि कम्मं ॥ बत्तीसदोसर दियं, पणवीसा वसग्गविसु ॥ २ ॥ ग्रह सम्ममवणयंगो, कर जुप्रविधि रिपुत्तिरयहरणो ॥ परिचिंता अश्यारे, जहकमं गुरुपुरो वियडे ॥ ३ ॥ यह नवविसीतुं (इ ति तृतीयमावश्यकम् ॥ ३॥ ) सुत्तं, सामायिय मायिय पढिय पय ॥ हियम्मि इच्चा, ६ पढइ डहर हि विहिया ॥ ४ ॥ दाऊण वंदांतो, पणगाइ सुजइ सु खामए तिनी ॥ कि कम्मं करियायरि, यमाइ गाहा तिगं पढाई ॥ ५ ॥ इति तुर्यमावश्यकम् ॥ ४ ॥ इय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy