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(१५) दूषणसे बच जावे और इनकों साधु माननेवाले श्रावकोंका मिथ्यात्वनी दूर हो जावे, क्योंके असा धुकों साधु मानना यह मिथ्यात्व है और विना चा रित्र उपसंपदा अर्थात् दीदाके लीये कदापि जैनम तके शास्त्रमें साधुपणा नही माना है.
तथा महानिशीथके तीसरे अध्ययनमें ऐसा पाठ है॥ सत्त गुरुपरंपरा कुसीले, एग 5 ति परंपरा कु सीले ॥ इस पाठका हमारे पूर्वाचार्योने ऐसा अर्थ करा है,वहां दो विकल्प कथन करनेसें ऐसा मालुम होता है के एक दो तीन गुरु परंपरा तक कुशील शिथिलाचारीके हूएनी साधु समाचारी सर्वथा उनि न नही होती है,तिस वास्ते जेकर को किया नकार करे तदा अन्य संजोगी साधुके पाससें चारित्र उपसं पदा विना दीदाके लीयांनी क्रिया नधार हो शक्ता है, और चोथी पेढीसें लेकर उपरांत जो शिथिलाचा री क्रिया नदार करे तो अवश्यमेव चारित्र उपसंपदा अर्थात् दीदा लेकेही क्रिया नधार करे अन्यथा नही. ___ अथ जेकर प्रमोद विजयजीके गुरुनी संयमी होते तब तो रत्नविजयजी विना दीदाके लीयांनी क्रिया नझार करते तोनी यथार्थ होता, परंतु रत्न
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