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________________ उस जितशत्रु की वायुवेगा नामकी पतिदता और रूपवती पत्नी थी तथा अनंग की तरह सुन्दर मनोवेग नाम का पूत्र था। वह पुत्र सज्जनों को प्रसन्न करने वाला और दुर्जनों को कुचलने वाला था, परधन का अपहरणकर्ता नहीं था, आत्मवत् दूसरों को देखने वाला था, बारह व्रतों का पालक था (6-7) । उसका पवनवेग नाम का अभिन्न मित्र था जो विजयापुरी नगरी के विद्याधर राजा का पुत्र था। पवनवेग मिथ्यादष्टि और कुतर्की था पर मनोवेग सम्यग्दृष्टि और जैनधर्मावलम्बी था। मनोवेग पवनवेग को सन्मार्ग पर लाने के लिए चिन्तित रहता था। एक दिन वह कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालयों के दर्शन करने निकल पड़ा (8) चलते चलते एक स्थान पर उसका विमान अटक गया । उसने सोचा कि उसके विमान को किसी शत्रु ने रोका है अथवा किसी ऋद्धिधारी- केवलज्ञानी मुनि का प्रभाव है। कौतुहलवश उसने निर्जन जंगल में एक मुनि को देखा। वह जंगल अवन्ति देश की उज्जैनी नगरी का था। उस नगरी में एक सुन्दर उपवन था जिसमें एक निष्कलंक मुनीश्वर विराजमान थे । तुरन्त वह आकाश से उतरकर पूरे सम्मान के साथ उन्हें प्रणाम कर एक और बैठ गया और विनम्रता पूर्वक एक प्रश्न पूछा "हे मुनीन्द्र ! इस असार संसार में भ्रमण करने वाले जीव को कितना सुख है और कितना दुःख है ?" (9-12) मुनीश्वर ने मधुबिन्दु का दृष्टान्त देते हुए इस प्रश्न का उत्तर दिया । उन्होंने कहा- किसी व्यक्ति ने संसार रूपी अटवी के समान महावन में प्रवेश किया। उसने यमराज के समान संड को ऊंची किये क्रोधित हाथी को अपने सम्मुख आते देखा । पथिक हाथी के भय से बेतहाशा आगे भागा ओर संयोगवशात् कुये में गिर गया। वहां बीच में ही सरस्तंब अथवा बड़को जड़ (कास? ) को पकड़कर लटक गया। नीचे जब उसने देखा तो पाया कि एक विशाल अजगर बीच में और चार भुजंग चारों कोनों में मुंह खोले पड़े हुए हैं, ऊपर देखने पर पता चला कि उसी सरस्तंब की डगाल को एक श्वेत और एक काला चूहा काट रहा है। उसी समय उस वृक्ष के मूल भाग को हाथी ने जोर से हिलाया और फलतः उसमें लगी मधुमक्खियां उस व्यक्ति को लपट गई। दुःख से कराहते हुए जैसे ही उसने ऊपर देखा कि मधुमक्खियों के छत्ते से मधु का एक बिन्दु उसके मुंह में टपक गया (13)। वह अज्ञानी मधुबिन्दु के उस क्षणिक स्वाद से अपने आपको महासुखी मानने लगा और पुनः उसकी अभिलाषा करने लगा। बस संसार में ऐसा ही सुख-दुःख है। उस मधु बिन्दुकथा में अटवी और कूप संसार के प्रतीक है, पुरुष जीव का, हाथी मृत्यु का, भीलों का मार्ग अधर्म का प्रतीक है, अजगर नरक है, वृक्ष कर्मबन्ध है, सरस्तम्ब आयु है, श्वेत और अश्वेत मूषक शुक्ल और कृष्णपक्ष हैं, चार भुजंग चार कषायें हैं, मधुमक्षिकायें शरीर के राग है मधुबिन्दु का स्वाद इन्द्रियनित क्षणिक सुख है। इस तात्विक चिन्तन के माध्यम से व्यक्ति को संसार-सागर से पार होना चाहिए । धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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