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________________ 14) हरिषेण DP. 10.9 मेंa) स्वयमेवागतां नारी यो न कामयते नरः । ब्रह्महत्या भवेत्तस्य पूर्व ब्रह्माब्रवीदिदम् ॥ B) मातरमुपैहि स्वसारमुपैहि पुत्रार्थी न कामार्थी ॥ अमितगति में यह उपलब्ध नहीं है। ४. विषय-परिचय १. प्रथम संधि बुध हरिषेण शुद्ध मन, वचन, काय से भक्ति पूर्वक जिनेन्द्र भगवान को प्रणाम कर धर्मपरीक्षा रचने की प्रतिज्ञा करते हैं। उसके बाद वे अपने पूर्ववर्ती कवियों में चतुर्मुख, स्वयंभ और पुष्पदन्त कवियों का उल्लेख करते हैं, तीनों का स्मरणकर वे यह भी कहते हैं कि चतुर्मुख के मुख में सरस्वती निवास करती है। स्वयंभू लोकालोक का ज्ञाता है और पुष्पदन्त को सरस्वती कभी छोड़ती नहीं। इनकी तुलना में, आगे कवि अपनी विनम्रता प्रगट करते हुए कहता है, कि मैं छंद और अलंकार के ज्ञान से विरहित हूँ, काव्य रचने में लज्जा का अनुभव हो रहा है फिर भी जिनधर्म के अनुरागवश काव्य रचना कर रहा हूँ। बुध श्री सिद्धसेन को प्रणाम करके यहां वे यह भी स्पष्टत: कहते हैं कि धर्मपरीक्षा पहले कवि जयराम ने गाथा में रची थी। उसी कोवे पद्धडिया छन्द में रच रहे हैं ॥१॥ इसके बाद कथा प्रारंभ होती है। मनोवेग और पवनवेग कथा यहां जम्बवक्ष से चिन्हित जम्बूद्वीप है जिसमें जिनवर के वचन की तरह भरतक्षेत्र शोभायमान है। उसमें रमणीय विशाल उद्यान, नगर, ग्राम आदि अपनी अनुपम शोभा से स्थित हैं। उसके मध्य विजया नामक विशाल पर्वत है जिसमें एक सुन्दर जिनालय है जो पक्षिकुलों का घर है । यह पर्वत उत्तर और दक्षिण श्रेणी में विभाजित है। उसपर विद्याधरों के उत्तर श्रेणी में साठ और दक्षिण श्रेणी में पचास नगरियां विद्यमान हैं (2-3)। उन पचास नगरियों में एक नगरी वैजयन्ती है जो कामिनी की तरह जन साधारण की आंखों की प्यारी है, विशाल उपवनों से सुशोभित है, उत्तुंग भवनों, गोपुरों और शिखरों से विराजित है ॥4॥ उस नगरी का राजा जितशत्रु था जिसने नीति पूर्वक अपने शत्रु राजाओं को पराजित किया था। यहां विरोधाभासालंकार में राजा की अनेक विशेषताओं का वर्णन है जिनमें लक्ष्मीवान्, सत्यपिपासु, विनयी, इन्द्रिय विजयी और अतुलबली होना प्रमुख है ।।5।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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