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________________ (२३) सप्तम संधि 1. मनोवेग ने पटना की अन्य वादशाला में 14.1-10 पहुंचकर अपनी कथा कही 2. मैं साकेत नगरी की वृहत्कुमारिका का पुत्र 14.11-23 हूँ। पिता के मात्र स्पर्श से मेरा जन्म हुआ। बारह वर्ष तक दुष्काल के भय से गर्भ में ही रहा। 3-4 बाद में चूल्हे के पास जन्म होते ही मैंने बा 14.24-32 भोजन मांगा। फलतः मां ने मुझे घर से निष्कासित कर दिया। 5. घर से निकलकर मैंने एक वर्ष तक तपस्या 14.33-38 की । साकेत में मैंने मां को पुनविवाहित देखा 6. पुराणानुसार पत्नी किन्हीं विशेष 12.39-45 परिस्थितियों में विवाह कर सकती है। 7-8 पुराण का अर्थ कहने पर भय व्यक्त 14.46-54 किया 9. भागीरथी से भगीरथ और गांधारी से 14.55-61 सौ पुत्रों की उत्पत्ति कथा 10. गर्भस्थ अभिमन्यु के समान उसने भी 14.62-67 तपस्वियों के वचन सुने 11-13 बारह वर्ष तक गर्भस्थ रहना भी 15.63-80 प्रामाणिक है । यम की कन्या ने अपना गर्भ सात हजार वर्ष तक रखा । बाद में उसी गर्भ से रावण का पुत्र इन्द्रजीत हुआ। 14-15 पाराशर और योजनगन्ध कथा 14.81-91 16-17 उद्दालक और चन्द्रमुखी कथा 14.92-101 18. समापन 15.1-15 अष्टम सन्धि 1. जैन पुराणानुसार कर्ण कथा । विचित्र वीर्य के तीन पुत्र-धृतराष्ट्र, पाण्डु और 15.17-21 विदुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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