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________________ १०८ घत्ता- जिणरूउ विउविवि फणिवइणा झाणालंबिय वा हो। विज्जावलेण पच्छण्णु किंउ सव्वरूउ जिणणाहहो ।।१२।। (13) राक्षसवंशोत्पत्ति कथा झाणु खमविवि हत्थें फंसेवि पुणु सुरणरविज्जाहर पुज्जउ पणविवि जिण पडिविव फणिदहो उत्तरदाहिणसेढिहि सामिय पुरिसपरंपराए पवहतिए तहिं पसिद्धे वेयड्ढमहोहरे पुण्णमेहु णामें खयरेसरु ताम सुलोयणेण खयरेसें णवर पुण्णमेहे ण रणंगणे तो तहो णंदणेण सह सक्खें महुरालाउ सण्णेहल भासेवि । दिण्णउ धरणिंदे वेविज्जउ । गय सविज्ज वेयड्ढगिरिंदहो । जाय णरेंदणहंगण गामिय । वोलीणइ वहु णरवरपंतिए । रहमंजरिचक्कवालए पुरे । रज्जु करइ णं सम्गि सुहेसरु । वेढिउ पुरवरु दाइय रोसें। तहो सिरु खुडिउ मुइय अमरंगणे । पुण्णमेहु हउँ हयपडिवक्खें। 10 घत्ता- तो पुण्णमेहु णंदणु समरे परिसेसिय णियसाहणु । रणे सहसक्ख हो मिल्लेवि फलु णट्ठउ तोयदवाहण ॥१३॥ (14) हंसविमाणे णहे गच्छंतउ सरणु ण कोवि कहि मि पिच्छंतउ। पणविय मणुयसुरासुरविंदहो समवसरण गउ अजियजिणिदहो । तहिं अमरेसरेण मं भासिउ ते सवइहवइयरु उब्भासिउ । भणिउ सुरिंदें भउ मिल्लेविणु जिणु पणवहि करमउलि करेविणु । जिणु पणवंतह अरिभउ फिटइ गिविडु वि णियलणिवंधणु तुट्टइ। 5 जिणु पणवंतह वियलइ कलिमलु सुहणिहाणु उप्पजइ केवलु । तो सहसक्खु वि तहो पइलग्गउ झत्ति पत्तु तहिं कोववसंगउ । माणथंभु अवलोइउ जावहि माणमडप्फरु विहडिउ तावहि । विणि वि णिरु अप्पाणउ णिदेवि णरकोट्ठए णिविट्ठजिणु वंदेवि । (13) 1.b सणेहउ, 2.a पुज्जिउ, 5.a inter. वह and णरवर, 6.a तहि पसिद्ध, 7.b रज्ज, a सुरेसुरु, 9.a समरंगणे for अमरंगणे, 10.a तहे, a हउ, b हय हउं पयडियवक्खें, a पडिवखे, Ila omits णिय, 12.b रणे, b मेल्लिछलु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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