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________________ १०६ घत्ता-दिय भणहि पुराणहि अलिउ जइ तो कि ण उ पयडिज्जइ । णिसुणेविण दियवरवयणगइ वंदएण पभणिज्जइ ।।९।। (10) राम-रावण कथा जइयहु सोयसमेउ वियक्खणु तहि खरदूसणु रणे मारेविणु मायाकणयहरिणु दरिसेविणु एत्तहे जा पियवाणररायहो सो रामें रणे वालि वहेविणु मग्गिउ पेसणु परउवयारा भणइ रामु पियविरहु सुदूसहु तो सुग्गीवें अरिकरिकेसरि दिट्ट सीय पुणु तेण णवेविणु हणए लंक विद्धंसवि आइय 5 गउ वणवासहो रामु सलक्खणु । अच्छइ जा ता रावणु एविणु । गउ लंकाउरें सीय हरेविणु। वलिणाहित्तभज अणुरायहो। दिण्णु तासु तो तेण णवेविणु। भणु भणु कि किज्जइ णरसारा। केणविं णिय महु कंत गवेसहु । पेसिउ हणुउ पत्तु लंकाउरि । आसासिय पियवयण कहेविण । रामें सियदसण अणुराइय। घत्ता- वाणर कर उच्चाइय वि गिरिहि उयहिसेउ वंधाविउ । सुग्गिवें पुणु सेणासहिउ राहउ लंकहि वि पाविउ ।।१०।। इय वम्मीयमहारिसि भासिउं अस्थि कि ण जं मइ उवएसिउ । तो दिएहि पडिउत्तरु दिज्जइ एउ अणारिसु केम भणिज्जइ । तं णिसुणेवि माया रत्तंवरु भणइ पंयड वाइ पंडियवरु । पंच चयारि तिण्णि दो गिरिवर । लेवि जंति वहु जोयण वाणर । तं पि सच्च मण्णिउ तुम्ह हि जहि मद भासिउ पमाणु कि ण उ तहि । अहवा लोउ जि एरिसु भासइ पूसंतउ ण कयाइ वि दूसइ। .. एक्कु पव्वंगु पंच गिरि लेविणु दूरि जाइ जइ णहु लंघेविणु। । तो दो जंकय कइवय जोयण थुहु ण णिति अम्ह खायणमण । । (10) la रमु, 2.a तहि, 3.a मायाकणवहरिणु, 4 a वलिणहित्त०, b वलिणा हित्तभग्ग, 5 b रणे जारु वहेविणु, b दिण्ण, b ता for तो, a णवेप्पिण, 7.b भणई, b inter णिय and महु, 10.b हणुएं लंकविहंसय आएं, b अणुराएं, 11.b omits वि, b गिरिहिं, b उवहिसेउ, 12.सेणसहिउ, bomits वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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