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________________ १०४ घत्ता- जाणेविण जणु गयाणुगइउ कय रंगावलि सोहहो । भारहु पसिद्ध फुडु हवइ जइ इय मुणेवि गउगेहहो ।।६।। (7) गतानुगतिको लोको न लोकः पारमार्थिकः । पश्च लोकस्य मूर्खत्वं हारितं ताम्रभाजनम् ।।५।। इय मित्तहो भारहो भासिविणु माणसवेउ भणइ वि हसेविणु । अवरु वि परपुराणु दरिसमि तुह एहि जाह पुणरवि दियवरसह । इय भणेवि होएविणु वंदय विण्णि वि पंचमदारें पुरि गय। 5 तहिं पुणु वायसाल पइ सेविणु। हेलए भेरिघट वाएविणु । कणयहो बीदे खगाहिवणंदणु थिउ लीलए परवाइ वि मद्दणु । एत्थंतरे दिय जय जसकारणे ढुक्क महाभडाहं भडणं रणे। पभणिउ तेहिं वियक्खणु दीसहि ____कि अजिणंतु महासणि वइसहि । वाइउ हणइ भेरि किर एविण जय घंटा पुणु वाउ जिणेविण । 10 पइँ पुणु सत्थणाणमाहप्पे तिण्णि वि कियइ झत्ति णियदप्पें । तो रत्तंवरेण पडिजंपिउ इय वयणे महु हियवउ कंपिउ । धत्ता- हउँ सत्थु ण-याणमि वाउ किह करमि वुहेहि समाणउ । कोऊहलेण इउ सयलु किउ खमहो ण होमि सयाणउ ।।७।। शृगाल कथा तो दियवरहें वुत्तु किं दिक्खिय कि परमत्थु तवसि किमाइय ता तें भणिउ भणमि जइ भावहु तो दिय भणहि सच्चु वोलंतहँ कहिं अच्छिय कि सत्थुण सिक्खिय । कहहु पयडु कि कज्जे आइय । इय मझत्थभाउ दरिसावहु । को पडिकूल हवई नयवंतहँ। (7) 1a लेका न, a पारमार्थिका, b परमार्थिक, 2.a पस्य adds after । अयं श्लोकं चकारा ।। 3.b भणई विय सेविणु, 4. दरसमि तुहु, b जाह, 5.a होएविण्णु, a पुच्छवि for पुरि, 6.a तहि, a वए विणु, 7.a कंचणवीढे, 8.a भडाह, a रणि 9.b पभणिउं, a वयक्खणु, b वइसहि, no.a भणइ, b हणइं, ll.a पइ, a कयइ, 12.b परिजंपिउ, 13.a हउ सत्थ ण याणवि, b जिह कर कहेहि समाणउं, 14.b सयाणउं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003672
Book TitleDhammaparikkha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherSanmati Research Institute of Indology Nagpur
Publication Year1990
Total Pages312
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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